एक याचिका पर फैसला सुनाते समय उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने टिप्पणी की है कि किसी भी मामले में व्यक्तिगत अधिकाओं का संरक्षण करने वाली अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) देने से पहले वो कौन सी बातें हैं, जिनका अदालत को ध्यान रखना होता है।
जानकारी हो कि यह टिप्पणी उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने, आरोपी की अग्रिम जमानत को रद्द करने हेतु दायर याचिका की सुनवाई के दौरान की थी।
क्यों दी जाती है अग्रिम जमानत?
प्रस्तुत मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्य कांत (Justice Surya Kant) और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार (Justice CT Ravikumar) की पीठ ने यह माना है कि अग्रिम जमानत का उद्देश्य एक नागरिक के व्यक्तिगत अधिकारों को संरक्षित करना और गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग न दो, इसे देखना है।
अदालत का कहना है कि जिन मामलों में अग्रिम जमानत की गुंजाइश होती है, उनमें कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वो आरोपी के व्यक्तिगत अधिकारों और न्याय के हित के बीच एक संतुलन बनाकर रखें।
अग्रिम जमानत देते समय जरूरी है इन बातों का ध्यान रखना-
अदालत ने सुनवाई के दौरान समझाया है कि ऐसे मामलों में नागरिक के व्यक्तिगत अधिकारों को संरक्षण और जनहित में संतुलन बनाकर रखना बहुत मुश्किल है। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है कि जहां एक मामले में स्वतंत्रता के अधिकार (Right to Liberty) और मासूमियत के अनुमान (Presumption of Innocence) को बरकरार जरूरी है वहीं अपराध कितना गंभीर है, इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की कितनी आवश्यकता है, इसपर भी ध्यान देना जरूरी है।
हर व्यक्तिगत मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में इन हितों को तौलने में न्यायालय का विवेक उचित परिणाम सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
ज्ञात हो की उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर हुई थी जो एक आरोपी को मिली अग्रिम जमानत को चुनौती दे रही थी। आरोपी ने एक एनआरआई कपल के साथ उनकी प्रॉपर्टी का फ्रॉड किया था और इस मामले में उसे अग्रिम जमानत मिली हुई है।
अस्तु इस अग्रिम जमानत को खारिज करने हेतु याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दे दी।