हाईकोर्ट: किसी व्यक्ति को “भगौड़ा” घोषित करने से पहले अदालत की संतुष्टि और धारा 82 के प्रावधानों का पालन जरूरी-

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दिल्ली उच्च न्यायलय ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को “घोषित अपराधी” घोषित करने से पहले संबंधित अदालत को यह देखना जरूरी है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी किया गया था वह कैसे फरार हो गया। यह देखना भी जरूरी है कि संबंधित व्यक्ति ने स्वयं को इस तरह छिपाया कि उसका पता नहीं चल सका। अदालत ने एक व्यक्ति को भगौड़ा घोषित करने संबंधी निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है।

हाईकोर्ट ने कहा धारा 82 के प्रावधानों का पालन भी जरूरी

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि अदालत को खुद को संतुष्ट करना होगा कि दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की धारा 82 (1) के तहत प्रावधानों का ईमानदारी से पालन किया गया है या नहीं।

भगौड़ा घोषित करने के गंभीर परिणाम, जिसमें व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना और संपत्ति की कुर्की शामिल

उन्होंने कहा कि सीआरपीसी की धारा 82 के तहत प्रक्रिया जारी करने और किसी व्यक्ति को ‘घोषित अपराधी’ घोषित करने के गंभीर परिणाम होते हैं, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना और संपत्ति की कुर्की शामिल है। इसलिए यह अधिक महत्वपूर्ण है कि इस तरह के आदेश अदालत की संतुष्टि को दर्शाता है कि संबंधित व्यक्ति कानून की प्रक्रिया से बचने के लिए फरार हो गया है या खुद को छिपा रहा है।

अदालत ने कहा, कोई भी न्यायिक आदेश बिना कारण के पूरा नहीं होता है और यह अपेक्षा की जाती है कि प्रत्येक न्यायालय जो आदेश पारित करता है, उसके लिए कारण बताए। किसी व्यक्ति को घोषित व्यक्ति या घोषित अपराधी करने से पहले अदालत को स्वयं को संतुष्ट करना होगा कि धारा 82 (1) सीआरपीसी में बताए गए कदमों का ईमानदारी से पालन किया गया है।

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अदालत को सबूत लेने के बाद या सबूत के बिना कारणों को दर्ज करने की आवश्यकता है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी किया गया था वह फरार हो गया है या खुद को छिपाया है। अदालत ने यह टिप्पणी मोहम्मद हारिस उस्मानी द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करते हुए की। उसके खिलाफ कालकाजी पुलिस स्टेशन में बलात्कार, आपराधिक धमकी और आपराधिक सहित मामला दर्ज है।

मामले में निचली अदालत ने जांच अधिकारी के आग्रह पर उस्मानी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया और फिर उसे भगौड़ा घोषित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 82 के तहत आवेदन दायर किया गया, जिसमें कहा गया कि पुलिस ने याचिकाकर्ता की तलाश की थी, लेकिन वह दिए गए पते पर उपलब्ध नहीं था। जुलाई 2020 में ड्यूटी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने प्रोसेस सर्वर का बयान दर्ज किया और उसी दिन उसने उस व्यक्ति को भगौड़ा घोषित कर दिया।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि उस्मानी को भगोड़ा घोषित करने में मजिस्ट्रेट ने पूरी तरह से दिमाग नहीं लगाया। उसके खिलाफ धारा 82 सीआरपीसी के तहत प्रक्रिया 10 फरवरी 2020 को उस 24 मार्च के लिए जारी की गई थी। हालांकि, उस समय देश में देशव्यापी तालाबंदी लागू कर दी गई थी और वह अदालत के सामने पेश नहीं हो सका। याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि उसने अग्रिम जमानत के लिए दायर किया, जिसमें उसे जांच में शामिल होने का निर्देश दिया गया था, लेकिन वह जांच में शामिल नहीं हो पाया। क्योंकि, उसे 15-दिवसीय होम आइसोलेशन निर्धारित किया गया था।

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हाईकोर्ट ने कहा निचली अदालत का आदेश इस आधार पर गलत है कि उस्मानी पर धारा 82(4) के तहत किसी अपराध का आरोप नहीं था। इसलिए उसे भगौड़ा घोषित नहीं किया जा सकता। ऐसे में इस फैसले को खारिज किया जाता है।

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