हमारे देश में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं कि जब भी हम अपनी संस्कृति को भूल गए तो विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर हमें गुलाम बना लिया और आज भी अगर हम नहीं जागे तो हमें तालिबान के निरंकुश आक्रमण और अफगानिस्तान पर कब्जे को नहीं भूलना चाहिए-
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गाय को लेकर बुधवार को बड़ी टिप्पणी की है। न्यायालय ने केन्द्र सरकार को सुझाव दिया है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी गाय काटने के एक आरोपी जावेद की जमानत याचिका को रद्द करते हुए किया।
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए और गौरक्षा को हिंदुओं का मौलिक अधिकार किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि हर देशवासी का फर्ज है कि वह गाय का सम्मान करें और उनकी सुरक्षा भी करें। कॉउ स्लॉटर एक्ट के तहत जावेद नाम के व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह सुझाव दिए हैं।
ज्ञात हो की इससे पहले राजस्थान उच्च न्यायालय भी गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के सुझाव दे चुका है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह केंद्र सरकार के साथ समन्वय में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
न्यायमूर्ति शेखर यादव की खंडपीठ ने जावेद को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि आवेदक ने गाय की चोरी करने के बाद उसे मार डाला। उसका सिर काट दिया और उसका मांस भी उसके पास रखा था।
न्यायालय ने निम्न महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी कीं:
1. मौलिक अधिकार केवल बीफ खाने वालों का ही नहीं है, बल्कि जो गाय की पूजा करते हैं और आर्थिक रूप से गायों पर निर्भर हैं, उन्हें भी सार्थक जीवन जीने का अधिकार है।
2. जीवन का अधिकार मारने के अधिकार से ऊपर है और गोमांस खाने के अधिकार को कभी भी मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता।
3. गाय बूढ़ी और बीमार होने पर भी उपयोगी होती है। उसका गोबर और मूत्र कृषि भूमि का खाद और दवा बनाने के लिए बहुत उपयोगी होता है। सबसे बढ़कर जिसे माँ के रूप में पूजा जाता है, भले ही वह बूढ़ा हो या बीमार हो उसे मारने का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता।
4. ऐसा नहीं है कि केवल हिंदू ही गायों के महत्व को समझ चुके हैं। मुसलमानों ने भी अपने शासनकाल में गाय को भारत की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना है। गायों के वध पर पाँच मुस्लिम शासकों ने प्रतिबंध लगा दिया था। बाबर, हुमायूँ और अकबर ने भी अपने धार्मिक त्योहारों में गायों की बलि पर रोक लगा दी थी। मैसूर के नवाब हैदर अली ने गोहत्या को दंडनीय अपराध बना दिया। 5. समय-समय पर देश की विभिन्न अदालतों और सुप्रीम कोर्ट ने गाय के महत्व को देखते हुए इसके संरक्षण, प्रचार और देश की जनता की आस्था और संसद और विधानमंडल को ध्यान में रखते हुए कई फैसले दिए हैं। विधानसभा ने भी समय के साथ गायों के हितों की रक्षा के लिए नए नियम बनाए हैं।
5. बहुत दुख होता है कि कई बार गोरक्षा और समृद्धि की बात करने वाले गोभक्षी बन जाते हैं। सरकार गौशाला का निर्माण भी करवाती है, लेकिन जिन लोगों को गायों की देखभाल का जिम्मा सौंपा गया है, वे ही गाय की देखभाल नहीं करते।
7. ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां गौशाला में गायों की भूख और बीमारी से मौत हो जाती है। उन्हें गंदगी के बीच रखा गया है। भोजन के अभाव में गाय पॉलीथिन खा जाती है और परिणामस्वरूप बीमार होकर मर जाती है।
8. दूध देना बंद कर चुकी गायों की हालत सड़कों और गलियों में देखी जा सकती है। बीमार और क्षत-विक्षत गायों को अक्सर लावारिस देखा जाता है। ऐसे में बात सामने आती है कि वे लोग क्या कर रहे हैं, जो गाय के संरक्षण के विचार को बढ़ावा देते हैं।
9. कभी-कभी एक-दो गायों के साथ फोटो खिंचवाने से लोग सोचते हैं कि उनका काम हो गया, लेकिन ऐसा नहीं है। गाय की रक्षा और देखभाल सच्चे मन से करनी होगी और सरकार को भी उनके मामले पर गंभीरता से विचार करना होगा।
10. देश सुरक्षित रहेगा, तभी गाय का कल्याण होगा और तभी देश का भी कल्याण होगा। खासकर वे लोग जो मात्र दिखावा करके गाय की रक्षा की बात करते हैं, उन्हें गौरक्षा को बढ़ावा देने की उम्मीद छोड़नी होगी।
11. सरकार को भी संसद में एक विधेयक लाना होगा और गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना होगा। गायों को नुकसान पहुंचाने की बात करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाना होगा/गोशाला आदि बनाकर गौरक्षा की बात करने वालों के लिए भी कानून आना चाहिए। लेकिन उनका गोरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है, उनका एक ही मकसद है गोरक्षा के नाम पर पैसा कमाना।
12. गौरक्षा और संवर्धन किसी एक धर्म के बारे में नहीं है, बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर नागरिक का है। चाहे वह किसी भी धर्म या पूजा का हो।
13. हमारे देश में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं कि जब भी हम अपनी संस्कृति को भूल गए तो विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर हमें गुलाम बना लिया और आज भी अगर हम नहीं जागे तो हमें तालिबान के निरंकुश आक्रमण और अफगानिस्तान पर कब्जे को नहीं भूलना चाहिए।