गुंडों की मदद से गाड़ी खींचकर कर्ज वसूली करना संविधान के खिलाफ: पटना हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

Estimated read time 1 min read

कोर्ट ने कहा कि ये संविधान में दिए गए जीवन जीने के अधिकार और आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और इस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।

पटना उच्च न्यायलय ने कहा है कि कर्ज नहीं चुकाने वाले गाड़ी मालिकों से गाड़ियों की जबरन जब्ती गलत है। ये संविधान की ओर से दी गई जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार का सरासर उल्लंघन है। इस तरह की धमकाने वाली कार्रवाइयों के खिलाफ FIR दर्ज होनी चाहिए।

अदालत ने कहा कि प्रतिभूतिकरण के प्रावधानों का पालन करते हुए वाहन ऋण की वसूली की जानी चाहिए। इसके लिए ग्राहकों के सुरक्षा हित को लागू करें।

न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की पीठ ने रिट याचिकाओं के एक बैच का निपटारा करते हुए, बैंकों और वित्त कंपनियों को ऐसा करने पर लताड़ भी लगाई।

उन बैंकों को जो बाहुबलियों को बंधक वाहनों को जबरन जब्त करने के लिए तैयार करती हैं। अदालत ने बिहार के सभी पुलिस अधीक्षकों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी वसूली एजेंट की ओर से किसी भी वाहन को जबरन जब्त नहीं किया जाए।

पटना हाईकोर्ट गाड़ियों की जबरन जब्ती पर सख्त-

अदालत ने 19 मई को वसूली एजेंटों के जबरन वाहनों को जब्त करने के पांच मामलों की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। दोषी बैंकों/वित्तीय कंपनियों में से प्रत्येक पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। अपने 53 पन्नों के फैसले में, न्यायमूर्ति रंजन ने सर्वोच्च न्यायालय के 25 से अधिक फैसलों का उल्लेख किया। इसमें दक्षिण अफ्रीका के एक फैसले का भी जिक्र किया गया। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट किसी भी ‘निजी कंपनी’ के खिलाफ एक रिट याचिका पर सुनवाई कर सकता है, जिसकी कार्रवाई एक नागरिक को उसके जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार से वंचित करती है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित है।’

You May Also Like