बिहार मतदाता सूची संशोधन मामला: सुप्रीम कोर्ट ने ईसीआई को विशेष पुनरीक्षण जारी रखने की दी अनुमति, आधार सहित अन्य दस्तावेजों पर विचार का सुझाव
— विधि संवाददाता, नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चुनाव आयोग (ECI) को बड़ी राहत दी है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार करते हुए निर्देश दिया कि चुनाव आयोग आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार करने पर विचार करे।
⚖️ न्यायालय की टिप्पणी
पीठ ने अपने आदेश में कहा:
“हम prima facie यह मानते हैं कि न्याय के हित में चुनाव आयोग को आधार, राशन कार्ड, वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों को स्वीकार करना चाहिए। हालांकि यह निर्णय आयोग पर निर्भर करता है कि वह इन्हें स्वीकार करता है या नहीं। यदि नहीं, तो वह उपयुक्त कारण बताए, जो याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट कर सके।”
अदालत ने यह भी माना कि चूंकि बिहार में चुनाव नवंबर में संभावित हैं, इसलिए प्रक्रिया का समय अत्यंत सीमित है। याचिकाकर्ताओं ने अंतरिम रोक की मांग नहीं की, अतः सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की गई है।
📌 सुप्रीम कोर्ट ने उठाए तीन अहम सवाल:
- क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा विशेष संशोधन करने का संवैधानिक अधिकार है?
- आयोग इस अधिकार का उचित प्रयोग किस प्रक्रिया के तहत कर रहा है?
- क्या 30 दिन की समयसीमा उचित है, खासकर चुनाव से पहले?
🏛️ याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां
याचिकाएं राजद सांसद मनोज झा, ADR, PUCL, योगेंद्र यादव, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा और पूर्व विधायक मुजाहिद आलम सहित कई नागरिक संगठनों ने दाखिल की थीं। उनका आरोप था कि:
- चुनाव आयोग ने 24 जून को जो निर्देश जारी किया है, वह नागरिकता साबित करने की अनावश्यक जिम्मेदारी मतदाताओं पर डालता है।
- आधार और राशन कार्ड को अमान्य कर देना ग्रामीण और वंचित तबकों को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश हो सकती है।
- यह प्रक्रिया नागरिकता जांच की तरह है, जो कानूनन ईसीआई के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
🗣️ चुनाव आयोग की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने चुनाव आयोग की ओर से पक्ष रखते हुए कहा:
- “हम संवैधानिक संस्था हैं, मतदाता ही हमारा अस्तित्व हैं। किसी को भी सूची से हटाना हमारा उद्देश्य नहीं है, जब तक कानून हमें ऐसा करने को बाध्य न करे।”
- आधार नागरिकता या निवास का प्रमाण नहीं है। हां, यदि किसी पर आपत्ति हो, तो पहचान जांच के लिए आधार का प्रयोग किया जा सकता है।
- प्रक्रिया पारदर्शी और नियमानुसार हो रही है, जिसमें दावा और आपत्ति दर्ज कराने का भी पर्याप्त अवसर मिलेगा।
🔍 अदालत का संतुलन
सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि आधार को दस्तावेज़ों की सूची से बाहर रखने का तर्क समझ से परे है, जबकि देश भर में आधार को व्यापक रूप से पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
“जब आधार को अन्य सरकारी योजनाओं के लिए मान्यता दी गई है, तो यहां क्यों नहीं?”, बेंच ने पूछा।
🔚 निष्कर्ष
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने SIR प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन ईसीआई को निर्देश दिया है कि वह दस्तावेजों की स्वीकार्यता पर विचार करे और अपना पक्ष स्पष्ट कारणों के साथ रखे। इस बीच याचिकाकर्ताओं ने भी अंतरिम रोक की मांग नहीं की।
अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ईसीआई के हलफनामे और सभी पक्षों की दलीलों के आधार पर आगे फैसला लेगा।
यह मामला चुनावी पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों के संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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