केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा – वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं, वक्फ बोर्ड का कार्य धर्मनिरपेक्ष

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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा – वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं, वक्फ बोर्ड का कार्य धर्मनिरपेक्ष

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया कि वक्फ एक इस्लामिक अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ बोर्ड का कार्य पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है और यह किसी भी धार्मिक गतिविधि से जुड़ा नहीं है।

वक्फ सिर्फ चैरिटी है, धर्म का मूल सिद्धांत नहीं
मेहता ने चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष कहा, “वक्फ इस्लामिक अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं। वक्फ इस्लाम में सिर्फ दान है, और दान हर धर्म में मान्य है। इसे किसी भी धर्म का मूल सिद्धांत नहीं माना जा सकता।”

गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर बचाव
उन्होंने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति का बचाव करते हुए कहा कि यह विविधता और बोर्ड के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को ध्यान में रखकर किया गया है। “वक्फ बोर्ड सिर्फ धर्मनिरपेक्ष कार्य करता है—संपत्ति प्रबंधन, रजिस्टर रखरखाव, लेखा परीक्षा। ये पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष कार्य हैं। बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की उपस्थिति से किसी भी धार्मिक प्रथा पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।”

वक्फ एक्ट में संशोधन का उद्देश्य
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 सभी हितधारकों से विचार-विमर्श के बाद लाया गया था और इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन और दुरुपयोग को रोकना है। उन्होंने बताया कि संशोधन विधेयक संसद की संयुक्त समिति द्वारा विस्तृत विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया, जिसमें देशभर के विभिन्न हितधारकों के विचार लिए गए।

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‘वक्फ-बाय-यूजर’ पर रोक का औचित्य
मेहता ने कहा कि ‘वक्फ-बाय-यूजर’ (उपयोग के आधार पर वक्फ) के नाम पर बहुत गड़बड़ियां हो रही थीं, जिसमें सरकारी संपत्तियों पर दावे किए जा रहे थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि “वक्फ-बाय-यूजर की समाप्ति भविष्य के लिए है और मौजूदा पंजीकृत वक्फ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वक्फ-बाय-यूजर कोई मौलिक अधिकार नहीं है।”

“वक्फ छीना जा रहा है” – झूठी अफवाह
मेहता ने कहा, “अब एक झूठा नैरेटिव बनाया जा रहा है कि वक्फ छीना जा रहा है। यह सिर्फ देश को गुमराह करने की कोशिश है। वक्फ-बाय-यूजर को भविष्य में कुछ अपवादों के साथ ही मान्यता दी जाएगी, बशर्ते कि वह पंजीकृत हो।”

महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण
उन्होंने यह भी बताया कि वक्फ-अल-अल-औलाद (पारिवारिक वक्फ) के तहत संशोधन अधिनियम में महिला उत्तराधिकारियों के अधिकारों को सुरक्षित रखा गया है, ताकि संपत्ति वक्फ में देने से पहले महिला वारिसों को उनका उचित हिस्सा मिल सके।

सुनवाई जारी, कल फिर होगी बहस
सुप्रीम कोर्ट इस समय वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर अंतरिम रोक लगाने की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। बहस कल भी जारी रहेगी। इस मामले में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें दावा किया गया है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभावपूर्ण है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। वहीं, भाजपा शासित छह राज्यों ने संशोधन का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की है।

राष्ट्रपति ने दी थी मंजूरी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल, 2025 को वक्फ (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी थी, जिसे संसद के दोनों सदनों में जोरदार बहस के बाद पारित किया गया था। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि इसमें सिर्फ संपत्ति प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित किया गया है।

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