केंद्र सरकार का हलफ़नामा: वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं, सिर्फ़ प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को नियंत्रित करता है
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट – केंद्र सरकार ने शुक्रवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में प्रारंभिक हलफ़नामा दाखिल किया। केंद्र ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों (अनुच्छेद 25 और 26) का उल्लंघन नहीं करता और याचिकाएं खारिज की जानी चाहिए।
“कानून केवल संपत्ति प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं से संबंधित”
हलफ़नामे में केंद्र ने तर्क दिया कि संशोधन केवल वक्फ संपत्तियों के प्रशासन, प्रबंधन, लेखा और पंजीकरण से संबंधित हैं और इसका किसी भी धार्मिक कर्मकांड या आस्था से कोई संबंध नहीं है।
केंद्र ने यह भी कहा कि किसी वैधानिक प्रावधान को निलंबित करना संविधानिक न्यायालयों का सामान्य व्यवहार नहीं है, और इस अधिनियम की किसी भी धारा पर रोक लगाने से परहेज़ किया जाना चाहिए।
“Waqf-by-user” पर भ्रमपूर्ण प्रचार – केंद्र का आरोप
केंद्र ने आरोप लगाया कि एक “जानबूझकर गढ़ा गया और भ्रामक नैरेटिव” अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे यह गलत धारणा बनाई जा रही है कि ऐसे वक्फ जिनके पास कोई दस्तावेज़ी साक्ष्य नहीं है (जैसे Waqf-by-user), वे इस संशोधन से प्रभावित होंगे।
सरकार ने स्पष्ट किया:
“यह धारणा न केवल भ्रामक और असत्य है, बल्कि न्यायालय को जानबूझकर गुमराह करने की चालाक कोशिश है।”
“Waqf-by-user” को संरक्षण के लिए पंजीकरण ही एकमात्र आवश्यकता
सरकार ने बताया कि
“8 अप्रैल 2025 तक Waqf-by-user के रूप में पंजीकरण ही एकमात्र अनिवार्य शर्त है। न पहले और न ही संशोधन के तहत किसी ट्रस्ट डीड या दस्तावेज़ी प्रमाण की आवश्यकता बताई गई है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि पिछले 100 वर्षों से वक्फ कानून के अंतर्गत पंजीकरण अनिवार्य रहा है, और जो लोग जानबूझकर इससे बचते रहे हैं, वे अब संरक्षण की दावा नहीं कर सकते।
“वक्फ” धार्मिक स्थान नहीं, एक प्रशासनिक अवधारणा – केंद्र का रुख
केंद्र ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ की अवधारणा को केवल धार्मिक स्थलों से जोड़ना उचित नहीं है। वक्फ अधिनियम, विशेष रूप से 2025 के संशोधन, केवल प्रशासनिक और धर्मनिरपेक्ष प्रावधानों तक सीमित हैं, जैसे:
- वक्फ संपत्तियों का लेखा
- नियोजन
- पंजीकरण
- पारदर्शी प्रबंधन
यह कानून धार्मिक सिद्धांतों या आस्थाओं को स्पर्श नहीं करता, सरकार ने कहा।
गैर-मुस्लिमों की भागीदारी पर भी सफाई
केंद्र ने गैर-मुस्लिमों की भागीदारी को लेकर उठे विवादों पर भी जवाब दिया और स्पष्ट किया कि:
- केंद्रीय वक्फ परिषद में अधिकतम 4 गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं (कुल 22 में से)
- राज्य वक्फ बोर्ड में 3 गैर-मुस्लिम सदस्य (कुल 11 में से)
यह अनुपात मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बना देने जैसा नहीं है, जैसा याचिकाओं में आशंका जताई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में पहले दी थी कुछ प्रावधानों पर अमल न करने की गारंटी
केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में यह आश्वासन भी दिया था कि Waqf परिषद और बोर्ड में नियुक्तियों तथा वक्फ संपत्तियों के डि-नोटिफिकेशन जैसे प्रमुख प्रावधानों को अभी लागू नहीं किया जाएगा। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी स्पष्ट किया कि अस्थायी रूप से किसी नई नियुक्ति पर रोक रहेगी।
पृष्ठभूमि
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) विधेयक को अपनी संविधानिक मंजूरी दी थी। यह विधेयक संसद के दोनों सदनों में गर्मागरम बहसों के बाद पारित हुआ था। अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं में इसे मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों के विरुद्ध बताया गया है।
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