CJI बी.आर. गवई ने कहा – ‘सुप्रीम कोर्ट अब केवल CJI-केंद्रित नहीं’; न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता व सामाजिक समावेश का भरोसा
मुंबई | विधि संवाददाता
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने शनिवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में आयोजित बॉम्बे बार एसोसिएशन के एक अभिनंदन समारोह में सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और समावेशिता को प्राथमिकता देने के संकल्प को दोहराया। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट को “केवल CJI-केंद्रित अदालत” मानने की धारणा को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है।
CJI गवई ने कहा,
“हमने यह प्रयास किया है कि सुप्रीम कोर्ट को केवल CJI-केंद्रित संस्था न माना जाए। संस्थान के हित में, विशेषकर जस्टिस संजीव खन्ना के कार्यकाल से यह पहल शुरू की गई कि न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और समावेशी हो।”
54 उम्मीदवारों से हुई बातचीत, 36 नियुक्तियों की सिफारिश
CJI ने साझा किया कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 54 उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया और उनमें से लगभग 36 नामों की सिफारिश की गई है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता बनी रहेगी और सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा, लेकिन योग्यता से कोई समझौता नहीं होगा।
“हम यह सुनिश्चित करेंगे कि पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाए और सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिले। परंतु योग्यता कभी भी प्रभावित नहीं होने दी जाएगी।”
न्यायिक रिक्तियों को बताया लंबित मामलों का बड़ा कारण
कार्यक्रम में न्यायिक मामलों की लंबितता का मुद्दा भी उठा, जिस पर CJI गवई ने गंभीरता से चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि लंबित मामलों की एक बड़ी वजह न्यायाधीशों के पदों पर रिक्तियां बनी रहना है।
“लंबितता एक बड़ा मसला है, और इसका एक प्रमुख कारण न्यायिक रिक्तियां हैं। हमने नागपुर में यह तीसरा कार्यक्रम किया है, जहां कॉलेजियम के कामकाज में हस्तक्षेप की शिकायतें सामने आई हैं। मैं आश्वस्त करता हूं कि हम पारदर्शिता सुनिश्चित करेंगे और सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के साथ-साथ मेरिट पर भी ध्यान देंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी अपनी मातृ उच्च न्यायालय, बॉम्बे हाईकोर्ट, को पूरी क्षमता से कार्यरत करने के लिए सभी सिफारिशों पर शीघ्रता से कार्रवाई की जाएगी।
सामाजिक समावेश और व्यक्तिगत प्रतिबद्धता
CJI गवई ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता का संदेश जाता है।
गौरतलब है कि जस्टिस बी.आर. गवई भारत के पहले बौद्ध और केवल दूसरे दलित CJI हैं, जिन्होंने मई 2025 में CJI के रूप में शपथ ली। उनसे पहले 2007 में न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन ने यह पद संभाला था।
निष्कर्ष
CJI गवई के वक्तव्य ने यह संकेत दिया कि सुप्रीम कोर्ट न केवल न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध है, बल्कि समाज के सभी वर्गों को न्यायपालिका में समुचित प्रतिनिधित्व देने की दिशा में भी सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। यह न्यायपालिका की बदलती और जवाबदेह होती संरचना की ओर एक सकारात्मक संकेत है।
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