NDPS Act sec 37: के तहत जमानत देते समय कोर्ट की प्रथम दृष्टया संतुष्टी ‘उचित आधार’ पर आधारित होना चाहिए – HC

NDPS Act sec 37: के तहत जमानत देते समय कोर्ट की प्रथम दृष्टया संतुष्टी ‘उचित आधार’ पर आधारित होना चाहिए – HC

दिल्ली उच्च न्यायालय एक मामले में पाया है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 37 के तहत जमानत देते समय, एक अदालत के पास आरोपी की प्रथम दृष्टया बेगुनाही और आरोपी जमानत पर रहते हुए ऐसा अपराध नहीं करेगा, इस पर विश्वास करने के लिए “उचित आधार” होना चाहिए।

एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 में निहित अपराधों के वर्गीकरण से संबंधित है और उन मामलों का प्रावधान करती है, जहां आरोपी व्यक्ति को जमानत दी जा सकती है। यह कुछ अपराधों के मामले में जमानत के लिए दोहरी शर्तें प्रदान करता है: एक, अभियुक्त की बेगुनाही पर प्रथम दृष्टया राय और दो, आरोपी जमानत पर रहते हुए वैसा अपराध नहीं करेगा।

प्रस्तुत मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि “एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 (बी) (ii) के तहत, अदालत को केवल दोहरी शर्तों के बारे में संतुष्ट होने की आवश्यकता नहीं है, यानी आरोपी की बेगुनाही की प्रथम दृष्टया राय और यह कि आरोपी जमानत पर रहते हुए वैसा अपराध नहीं करेगा, बल्‍कि अदालत के पास इस तरह की संतुष्टि के लिए “उचित आधार” होना चाहिए।”

कोर्ट ने जोड़ा, “इस प्रकार, ‘उचित आधार’ शब्द की कठोर परिभाषा नहीं है, हालांकि इसका अर्थ और दायरा प्रत्येक मामले में तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय होगा।”

कोर्ट ने कहा कि उस चालाकी के संबंध में भी जागरूक होने की जरूरत है, जिसे काननू के जर‌िए रोकने का प्रयास किया गया है। यदि आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाता है तो उसके नतीजे हो सकते हैं।

कोर्ट ने कहा, “अदालत को इस बात से संतुष्ट होने की जरूरत है कि रिहा किया गया व्यक्ति जमानत पर रहते हुए अपराध नहीं करेगा। दोनों शर्तें आपस में जुड़ी हुई हैं क्योंकि विधायिका का इरादा है कि ऐसे मामलों में जहां ऐसे गंभीर अपराध के होने के संभावना है, व्यक्ति को रिहा करने की आवश्यकता नहीं है।”

कोर्ट ने उक्त अवलोकन एक ऐसे व्यक्ति की जमानत के मामले में किया, जिसके पास से 315 किलोग्राम भांग के कुल सात बोरे बरामद किए गए थे। जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अधिनियम के तहत निर्धारित अपराध न केवल एक व्यक्ति विशेष के लिए बल्कि पूरे समाज, खासकर देश के युवाओं के लिए खतरा हैं।

अदालत ने कहा, “इस तरह के अपराधों का व्यापक प्रभाव पड़ता है… ऐसे मामलों में विनाशकारी प्रभाव को रोकने के लिए संसद ने अपने विवेक से अधिनियम के तहत जमानत देने के लिए कड़ी शर्तों को रखना उचित समझा। अदालत को ऐसे मामलों में जमानत देते समय अधिनियम के विधायी इरादे और जनादेश को ध्यान में रखना होगा।”

अस्तु उपरोक्त टिप्पणियों के साथ जमानत याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल – प्रमोद बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य

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