चितपुर डबल मर्डर केस में दोषी संजय सेन को फांसी की सजा, कोर्ट ने बताया “दुर्लभ से दुर्लभतम मामला”
कोलकाता | न्याय संवाददाता
2015 के बहुचर्चित चितपुर डबल मर्डर केस में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम अदालत), सीलदह, अनिर्बन दास ने दोषी संजय सेन उर्फ बप्पा को फांसी की सजा सुनाई है। न्यायालय ने कहा कि यह मामला “दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी” में आता है और इसके लिए मृत्यु दंड ही उपयुक्त सजा है।
हत्या और डकैती के लिए दोष सिद्ध
संजय सेन को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 394 (चोट पहुंचाकर डकैती) के तहत दोषी पाया गया। न्यायालय ने 1 जुलाई को दोषसिद्धि की घोषणा की थी, जिसके बाद 2 जुलाई 2025 को सजा सुनाई गई।
हत्या का वीभत्स दृश्य और जांच की बारीकियां
यह जघन्य अपराध 16 जुलाई 2015 को कोलकाता के इंद्रलोक हाउसिंग एस्टेट में हुआ था। स्थानीय निवासियों की शिकायत पर पुलिस मौके पर पहुंची और बंद फ्लैट का दरवाजा तोड़ने पर अंदर प्रण गोबिंद दास (77) और उनकी पत्नी रेनुका दास (77) के शव मिले। दोनों की निर्मम हत्या की गई थी और उनके शरीर पर गहरे घाव थे। दोनों अलग-अलग कमरों में खून से सने पड़े थे।
लूट के इरादे से की गई हत्या
घटना के बाद सोने के गहने और नगद राशि गायब पाई गई थी। मृतकों के भतीजे डॉ. पार्थ सेन की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया। हत्या पूर्व-नियोजित और संपत्ति की लालच में की गई थी।
जांच की कमान हॉमिकाइड स्क्वाड, डिटेक्टिव डिपार्टमेंट के एसआई जगबंदु गराई को सौंपी गई थी। जांच में संजय सेन की संलिप्तता पाई गई। उसकी धारा 27 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत दिए गए बयान पर पुलिस ने 1.87 लाख रुपये नकद और लूटे गए सोने के आभूषण बरामद किए, जो उसने नंदीग्राम में छिपाए थे।
हत्या में प्रयुक्त लोहे की पाइप और खून से सने कपड़े भी मिले
पुलिस ने जिला मजिस्ट्रेट ग्रुप (DMG) की सहायता से लोहे की पाइप, खून से सने कपड़े और अन्य आपराधिक सामग्री आरोपी के घर के पास एक तालाब से बरामद की।
30 गवाहों की गवाही और समयबद्ध चार्जशीट
पूरे मुकदमे में 30 गवाहों की गवाही दर्ज की गई और पुलिस ने समय पर चार्जशीट दाखिल की। साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर न्यायालय ने दोषी को सबसे कठोर सजा सुनाई।
न्यायाधीश ने कहा – “हाथ से लिखी त्रासदी है यह”
न्यायमूर्ति अनिर्बन दास ने कहा,
“यह घटना समाज की अंतरात्मा को झकझोरने वाली है। वृद्ध दंपत्ति की निर्मम हत्या, केवल लालच और स्वार्थ के कारण की गई। यह घटना समाज में असुरक्षा का भय पैदा करती है और दोषी को सजा-ए-मौत से कम कोई दंड उपयुक्त नहीं हो सकता।”
निष्कर्ष
यह निर्णय एक स्पष्ट संदेश देता है कि निर्दोषों की हत्या और संपत्ति के लालच में की गई जघन्य घटनाओं के खिलाफ न्यायपालिका कोई रियायत नहीं देती। इस ऐतिहासिक फैसले ने न केवल पीड़ित परिवार को न्याय दिलाया, बल्कि कानून के शासन में आमजन का विश्वास भी पुनर्स्थापित किया है।
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