High Court Of Jammu & Kashmir And Ladakhat Srinagar

Cr.P.C. धारा 102 के अंतर्गत किसी भी रिश्तेदार का बैंक खाता ‘संपत्ति की परिभाषा’ के तहत आता है और जब्त किया जा सकता है: हाई कोर्ट

जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया है कि किसी आरोपी (जिसके अपराध की जांच की जा रही) के किसी भी रिश्तेदार का बैंक अकाउंट सीआरपीसी Cr.P.C. की धारा 102 के तहत संपत्ति की परिभाषा के अंतर्गत आता है।

न्यायमूर्ति संजय धर की खंडपीठ ने आगे कहा कि जांच के दौरान एक पुलिस अधिकारी आरोपी के रिश्तेदारों के उक्त खाते को जब्त या प्रतिबंधित कर सकता है, अगर ऐसी संपत्ति का उस अपराध के साथ सीधा संबंध है, जिसकी पुलिस जांच कर रही है।

क्या है मामला-

अपराध शाखा, कश्मीर को 2015 के एक सरकारी आदेश के जारी होने के बाद जेकेपीसीसी द्वारा निष्पादित या अनुबंधित सभी कार्यों की जांच करने के लिए कहा गया था ताकि निर्धारित एसओपी/ प्रक्रिया के उल्लंघन में ठेके देने में अनियमितताओं की पहचान की जा सके और इसके तहत आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जा सके।

याचि (कैसर अहमद शेख और बशीर अहमद वार) जम्मू और कश्मीर प्रोजेक्ट्स कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (JKPCC) के कर्मचारी थे और पूछताछ के दौरान उनकी गलतियों के कृत्य सामने आए, जिसमें प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का खुलासा हुआ। जिसके बाद धारा 420, 468, 120-बी आरपीसी और 5(2)(डी) पीसी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया।

इन्वेस्टिगेशन के दौरान आरोपी बशीर अहमद वार, उसकी पत्नी नीलोफर बशीर (मामले में एक याचिकाकर्ता), कैसर अहमद शेख और उसकी पत्नी इशरत आरा (एक याचिकाकर्ता) से संबंधित बैंक खातों को संदिग्ध क्रेडिट देखने के बाद फ्रीज कर दिया गया था।

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अब सभी चार याचिकाकर्ताओं ने अपने बैंक खातों को डीफ्रीज करने के लिए विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार, कश्मीर, श्रीनगर से संपर्क किया, लेकिन उनका आवेदन खारिज कर दिया गया। जिसके बाद वे हाईकोर्ट चले गए।

मामले में मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता नीलोफर जान और इशरत आरा जेकेपीसीसी के कर्मचारी नहीं हैं, बल्‍कि सरकारी शिक्षक के रूप में काम करती हैं, फिर भी उनके खाते बिना किसी कारण के फ्रीज कर दिए गए।

अदालत ने कहा-

शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि एक पुलिस अधिकारी मामले की जांच के दौरान किसी भी संपत्ति, जिसे चोरी होने का शक है या जो किसी अपराध के होने का संदेह पैदा करता है, उसे जब्त करने की शक्ति रखता है।

मौजूदा मामले में अदालत ने कहा कि पुलिस अधिकारी ने उन सभी धिकारियों और उनके परिजनों के बैंक खातों का विश्लेषण करना आवश्यक पाया, जो अपराध के समय प्रमुख पदों पर थे। इस उद्देश्य के लिए उनके बैंक खातों की जब्ती नितांत आवश्यक थी।

कोर्ट ने आगे कहा, “हालांकि याचिकाकर्ताओं ने इन संदिग्ध लेनदेन के संबंध में जांच एजेंसी को स्पष्टीकरण दिया है, फिर भी जांच एजेंसी इन प्रतिक्रियाओं या स्पष्टीकरणों को जैसे का तैसा स्वीकार नहीं कर सकती है। उन्हें याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए इन दावों की सच्चाई या अन्यथा की पुष्टि और पता लगाना होगा। तब तक प्रतिवादी जांच एजेंसी के लिए खातों को डीफ्रीज करना समय से पहले होगा…।”

धारा 102 सीआरपीसी Cr.P.C. के तहत पति-पत्नी के खातों की जब्ती के संबंध में न्यायालय ने मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए कहा कि महाराष्ट्र राज्य बनाम तापस डी नियोगी, (199) 7 एससीसी 685, ने पाया गया है कि कि पुलिस अधिकारी को ऐसा करने की शक्ति है।

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कोर्ट ने मामले में योग्यता नहीं पाते हुए अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।

केस टाइटल – कैसर अहमद शेख और अन्य बनाम थानेदार पी/एस अपराध शाखा कश्मीर

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