सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए कहा कि महज अनुबंध का उल्लंघन करने से धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और लेन-देन की शुरुआत में बेईमानी के इरादे को सही तरीके से दिखाया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए केवल वादे को पूरा करने में विफल रहने का आरोप पर्याप्त नहीं होगा।
अदालत ने कहा की “अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी के लिए आपराधिक अभियोजन को जन्म नहीं देता है जब तक कि लेनदेन की शुरुआत में धोखाधड़ी या बेईमानी इरादा सही से नहीं दिखाया जाता है। केवल वादा पूरा करने में विफल रहना आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।”
अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें जमीन की बिक्री के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत सरबजीत कौर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।
सरबजीत कौर ने सुरेंद्र सिंह की पत्नी मलकीत कौर के साथ 27 मई 2013 को एक भूखंड खरीदने के लिए एक समझौता किया था। इसके बाद उसने उसी जमीन को दर्शन सिंह की पत्नी को बेचने का समझौता किया, जिसके लिए उसे पांच लाख रुपये और बाद में 75,000 रुपये मिले। समझौता नहीं होने पर दर्शन सिंह ने प्रॉपर्टी डीलर मनमोहन सिंह और रंजीत सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
शिकायत में दर्शन सिंह ने अपने द्वारा किए गए दो अन्य लेनदेन का जिक्र किया और प्रॉपर्टी डीलरों से 29,39,500 रुपये की वसूली की मांग की। शिकायत की जांच की गई और 2016 में आखिरकार यह माना गया कि विवाद सिविल प्रकृति का होने के कारण किसी भी पुलिस कार्रवाई की आवश्यकता नहीं थी।
दर्शन सिंह ने अपनी पहले की शिकायत के आधार का खुलासा किए बिना इन्हीं आरोपों के साथ एक और शिकायत की और बाद में अपीलकर्ता सरबजीत कौर, मनमोहन सिंह और रंजीत सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
शीर्ष अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध तथ्यों से यह स्पष्ट है कि दर्शन सिंह ने पहली शिकायत दायर होने के बाद से अपने मामले में सुधार किया है, जिसमें सरबजीत कौर के खिलाफ कोई आरोप नहीं था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि पूरा विचार दीवानी विवाद को आपराधिक विवाद में बदलना और अपीलकर्ता पर कथित तौर पर भुगतान की गई राशि लौटाने का दबाव बनाना है।
अदालत ने कहा “आपराधिक न्यायालयों का उपयोग हिसाब बराबर करने या नागरिक विवादों को निपटाने के लिए पार्टियों पर दबाव डालने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। जहां भी आपराधिक मामले बनते हैं अदालतों को संज्ञान लेना होता है।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जिस शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी वह सेल डीड के पंजीकरण के लिए तय अंतिम तिथि के करीब तीन साल बाद दर्ज की गई थी।
इसमें कहा गया है कि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। पीठ ने कहा, ”इसलिए हमारी राय में उच्च न्यायालय की ओर से पारित आदेश को निरस्त किया जाना चाहिए। अपीलकर्ता की ओर से प्राथमिकी रद्द करने के लिए दायर याचिका को स्वीकार करने का आदेश दिया जाता है।”