दिल्ली हाई कोर्ट: सिर्फ तेज गति से वाहन चलाना लापरवाही का प्रमाण नहीं
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि केवल ‘तेज गति’ से वाहन चलाने मात्र से यह साबित नहीं होता कि चालक लापरवाही या उतावलेपन (रैश ड्राइविंग) से गाड़ी चला रहा था। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की पीठ ने एक आरोपी को दुर्घटना के मामले में दोषमुक्त कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
आरोपी पर आरोप था कि उसने तेज रफ्तार में कार चलाते हुए दो पैदल यात्रियों को टक्कर मार दी, जिससे दोनों की मृत्यु हो गई। निचली अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 279 (लापरवाही से वाहन चलाना) और धारा 304A (लापरवाही से किसी की मृत्यु कारित करना) के तहत दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी।
हाई कोर्ट की अहम टिप्पणियां
- तेज गति अपने आप में अपराध नहीं:
अदालत ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि आरोपी तेज गति से वाहन चला रहा था, यह साबित नहीं होता कि वह लापरवाही बरत रहा था। जब तक यह साबित न हो कि चालक ने जानबूझकर यातायात नियमों की अवहेलना की, केवल ‘तेज रफ्तार’ दुर्घटना का कारण मानना उचित नहीं है। - अहम साक्ष्यों की कमी:
हाई कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी ने सावधानी नहीं बरती या उसकी गाड़ी की गति नियमों से अधिक थी। किसी भी गवाह ने यह स्पष्ट नहीं किया कि ‘तेज गति’ का क्या आशय था या दुर्घटना के समय वाहन की वास्तविक गति कितनी थी। - निचली अदालत का निर्णय गलत:
हाई कोर्ट ने कहा कि गंभीर आरोपों को साबित करने के लिए ठोस और स्पष्ट साक्ष्यों की आवश्यकता होती है। इस मामले में अभियोजन पक्ष कोई मजबूत साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे यह साबित हो कि चालक ने जानबूझकर लापरवाही से वाहन चलाया।
अदालत का निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया और निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि सिर्फ ‘तेज गति’ को लापरवाही का प्रमाण नहीं माना जा सकता, जब तक कि इसे ठोस साक्ष्यों से सिद्ध न किया जाए।
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