Teen Talaq

दिल्ली उच्च न्यायलय ने तलाक-उल-सुन्नत को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका की खारिज-

दिल्ली उच्च न्यायालय ने जब यह देखा कि संसद पहले ही इस मामले में हस्तक्षेप कर चुकी है और एक कानून बनाया है, एक मुस्लिम पति द्वारा बिना किसी कारण या अग्रिम सूचना के, मनमाना, शरीयत विरोधी, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक के रूप में अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के लिए “अनुमानित पूर्ण विवेक” की घोषणा करने की मांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया।

मा. न्यायमूर्ति विपिन सांघी और मा. न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा की –

“हमें इस याचिका में कोई योग्यता नहीं मिलती, क्योंकि संसद पहले ही हस्तक्षेप कर चुकी है और उक्त अधिनियम को अधिनियमित किया है।”

विद्वान अधिवक्ता बजरंग वत्स के माध्यम से दायर याचिका में तलाक-उल-सुन्नत द्वारा तलाक के संबंध में जांच और संतुलन के रूप में विस्तृत दिशा-निर्देश या कानून जारी करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई थी। इस आशय का एक घोषणा पत्र भी मांगा गया था कि मुस्लिम विवाह केवल एक अनुबंध नहीं है बल्कि एक स्थिति है।

प्रस्तुत याचिका एक 28 वर्षीय मुस्लिम महिला नौ महीने के बच्चे की मां द्वारा दायर की गई थी। उक्त महिला को उसके पति ने इस साल अगस्त में तीन तलाक बोलकर छोड़ दिया था। अदालत ने शुरू में कहा, “हमारे विचार में मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और विशेष रूप से उसकी धारा तीन के अधिनियमन के आलोक में याचिका पूरी तरह से गलत है।”

याचिका में कहा गया, “याचिकाकर्ता ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए प्रतिवादी नंबर दो (उसके पति) पर 12.08.2021 को कानूनी नोटिस दिया। जवाब में प्रतिवादी नंबर चार पति ने याचिकाकर्ता को 02.09.2021 को एक कानूनी नोटिस दिया। इसमें प्रतिवादी नंबर चार पति ने याचिकाकर्ता को 02.08.2021 को तत्काल ट्रिपल तालक की घोषणा से इनकार किया है। साथ ही याचिकाकर्ता पत्नी को इस कानूनी नोटिस की प्राप्ति की तारीख से 15 दिनों के भीतर प्रतिवादी नंबर चार पति को तलाक देने के लिए कहा जाता है। याचिकाकर्ता प्रतिवादी नंबर दो के परिवार के सदस्य द्वारा सूचित किया गया था कि प्रतिवादी नंबर चार पति याचिकाकर्ता को दूसरी शादी के लिए तलाक देने की योजना बना रहा है।”

ALSO READ -  पहली बार सेंसेक्स 56,000 के पार, एचडीएफसी बैंक दो फीसदी चढ़ा-

तलाक उल सुन्नत को प्रतिसंहरणीय (रिकेबल) तलाक भी माना गया है, क्योंकि यह एक बार में अंतिम नहीं हो जाता है और हमेशा पति-पत्नी के बीच समझौता होने की संभावना बनी रहती है।

केस टाइटल – रेशमा बनाम भारत संघ महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार और अन्य।

W.P.(C) 10377/2021

सोशल मीडिया अपडेट्स के लिए हमें Facebook (https://www.facebook.com/jplive24) और Twitter (https://twitter.com/jplive24) पर फॉलो करें।

Translate »
Scroll to Top