दिल्ली हाई कोर्ट ने POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि हालांकि नाबालिगों की सुरक्षा के लिए सहमति की कानूनी आयु (Legal Age of Consent) आवश्यक है, लेकिन किशोरों को अपने भावनात्मक संबंध व्यक्त करने और रिश्ते बनाने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, बिना किसी आपराधिक मुकदमे के डर के।
न्यायालय की मुख्य टिप्पणियां
- न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि POCSO अधिनियम का मुख्य उद्देश्य शोषण और दुरुपयोग को रोकना है, न कि आपसी सहमति से बने प्रेम संबंधों को अपराध ठहराना।
- अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किशोरावस्था में प्रेम संबंध मानवीय विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, और इसे सम्मान और सहमति के दायरे में रहकर स्वीकार किया जाना चाहिए।
- समाज और कानून दोनों को बदलते समय के अनुसार विकसित होना चाहिए, ताकि आपसी सहमति और सम्मानजनक संबंधों को स्वीकार किया जा सके।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कानूनी प्रणाली को किशोरों के प्रेम अधिकारों की सुरक्षा करनी चाहिए, साथ ही उनके कल्याण और सुरक्षा को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
मामले का संक्षिप्त विवरण
- इस मामले में पीड़िता (Prosecutrix) ने अपने बयान (धारा 164 CrPC) में स्पष्ट रूप से कहा कि वह आरोपी के साथ सहमति से रिश्ते में थी।
- अदालत में दिए गए बयान के अनुसार, उनके बीच शारीरिक संबंध भी आपसी सहमति से स्थापित हुए थे।
- मेडिको-लीगल रिपोर्ट (MLC) में भी अभियोजन पक्ष (Prosecution) के दावों का समर्थन नहीं किया गया, क्योंकि कोई ऐसी चोट नहीं पाई गई जिससे यह संकेत मिले कि पीड़िता ने विरोध किया था।
- अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह संबंध आपसी सहमति से बना था, जबरन नहीं।
मुकदमे की स्थिति और हाई कोर्ट का निर्णय
- दिल्ली पुलिस ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमें आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत आरोप मुक्त (Acquitted) कर दिया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने पाया था कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि घटना के समय पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम थी।
- अदालत ने यह भी माना कि आरोपी और पीड़िता के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बने थे, और संदेह का लाभ (Benefit of Doubt) आरोपी के पक्ष में जाता है।
- इसी आधार पर आरोपी हितेश को POCSO अधिनियम की धारा 4 और धारा 3 के तहत दोषमुक्त कर दिया गया।
न्यायालय का निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट ने किशोर प्रेम संबंधों के प्रति अधिक मानवीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने कहा कि प्रेम को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि कानून को इस प्रकार विकसित किया जाना चाहिए कि वह किशोरों के अधिकारों की रक्षा करते हुए उनके शोषण को रोके।
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