अवमाना वाद में धोनी को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका, IPS अधिकारी जी संपत कुमार की सजा पर लगी अंतरिम रोक

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी जी संपत कुमार को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा सुनाई गई 15 दिन की साधारण कारावास की सजा पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह फैसला टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी द्वारा दायर अदालत की अवमानना मामले के जवाब में आया है।

न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली कुमार की याचिका पर नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई 8 मार्च को होनी है। धोनी ने साल 2022 में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पर कथ‍ित रूप से अपमानजक टिप्पणी होने पर अवमानना मामले (कंटेप्ट ऑफ कोर्ट केस) का केस IPS अध‍िकारी जी संपत कुमार के ख‍िलाफ खिलाफ दायर किया था।

अदालत की अवमानना का मामला धोनी द्वारा दायर 100 करोड़ रुपये के मानहानि मुकदमे के जवाब में दायर अपने लिखित बयान में न्यायपालिका के खिलाफ कुमार द्वारा की गई टिप्पणियों से उपजा है। 2014 में दायर किया गया मुकदमा, कुमार द्वारा इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) सट्टेबाजी घोटाले में लोकप्रिय क्रिकेटर का नाम लेने के संबंध में था।

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने 15 दिसंबर, 2023 के आदेश में कुमार को आपराधिक अवमानना ​​का दोषी पाया और उन्हें 15 दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि कुमार ने जानबूझकर मद्रास उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों के अधिकार को बदनाम करने और कम करने का प्रयास किया था।

धोनी ने संपत कुमार के खिलाफ कानून के मुताबिक कार्रवाई की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि संपत कुमार ने जानबूझकर हाई कोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट को बदनाम करने और उसके अधिकार को कम करने का प्रयास किया। हालांकि मद्रास हाई कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी को आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति देने के लिए 15 दिन की सजा को तीस दिन के लिए निलंबित कर दिया था। फिर संपत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

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धोनी की अवमानना याचिका में तर्क दिया गया कि कुमार के बयान न्यायपालिका पर हमला थे और पूर्व आईपीएस अधिकारी के लिए सजा की मांग की गई थी। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी होने के नाते कुमार ने अदालतों की गरिमा को कम करके भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा को पार कर लिया है।

अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक संस्था के रूप में न्यायपालिका में सार्वजनिक सम्मान और विश्वास सुनिश्चित करने के लिए अदालत की अवमानना ​​अधिनियम लागू किया गया है। इसमें कहा गया है कि कुमार द्वारा अपने अतिरिक्त लिखित बयान में दिए गए बयानों का उद्देश्य अदालत को बदनाम करना, उसके अधिकार को कम करना और न्याय प्रशासन में लोगों के विश्वास को नष्ट करना था।

उच्च न्यायालय ने कुमार के बचाव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अदालत के आदेश के खिलाफ एक सामान्य बयान और सुप्रीम कोर्ट पर “कानून के शासन” को बनाए रखने में विफल रहने का आरोप लगाना निष्पक्ष टिप्पणी नहीं माना जा सकता है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतों की गरिमा बनाए रखना कानून के शासन का मूल सिद्धांत है।

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