‘जबरन ऋण वसूली’ कार्यवाही की याचिका को ख़ारिज करते हुए HC ने कहा “एक उधारकर्ता, उधारकर्ता होता है, चाहे वह एक प्रैक्टिसिंग लॉयर हो या सि‌टिंग जज

‘जबरन ऋण वसूली’ कार्यवाही की याचिका को ख़ारिज करते हुए HC ने कहा “एक उधारकर्ता, उधारकर्ता होता है, चाहे वह एक प्रैक्टिसिंग लॉयर हो या सि‌टिंग जज

कर्नाटक उच्च न्यायलय Karnataka High Court ने सीनियर एडवोकेट एन रवींद्रनाथ कामथ की एक याचिका खारिज कर जिसमे उन्होंने श्री सुब्रमण्येश्वर सहकारी बैंक लिमिटेड की ओर से सरफेसी एक्ट SARFAESI ACT के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई ‘जबरन ऋण वसूली’ कार्यवाही को चुनौती दी थी।

बैंक द्वारा उन्हें ‘क्रोनिक लोन डिफॉल्टर’ होने के कारण उक्त कार्रवाई शुरु की थी।

न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित ने कहा, “एक उधारकर्ता, उधारकर्ता होता है, चाहे वह एक प्रैक्टिसिंग लॉयर हो या सि‌टिंग जज। जब वे क्रॉनिक डिफॉल्टर्स बन जाते हैं, तो ऋण कानून उनके साथ, अन्य उधारकर्ताओं से अलग अनुकूल व्यवहार का प्रावधान नहीं करते हैं। इसके विपरीत तर्क ऋण वसूली के मामलों में समानता/समता का उल्लंघन करता है और इसलिए, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।”

प्रस्तुत मामले में याचिकाकर्ता ने फरवरी 2017 में डेढ़ करोड़ रुपये Rs. 1.50Cr की राशि उधार ली और इसे 2,37,431 रुपये की 120 समान मासिक किस्तों में चुकाने पर सहमति व्यक्त की थी। हालांकि, याचिकाकर्ता ने ऋण लेने के पांच महीने के भीतर किस्ते जमा करने में चूक कर दी, जिसके कारण उसके ऋण खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के रूप में वर्गीकृत किया गया।

याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया कि उसे COVID-19 महामारी के कारण स्वीकार्य छूट नहीं दी गई और ऋणदाता – बैंक के साथ उसका कोई उचित सौदा नहीं था। इसके अलावा, इसमें कहा गया कि यदि अधिक समय दिया जा सके तो पूरी ऋण राशि को ‘अधिग्रहण’ या तीन महीने के भीतर चुकाया जा सकता है।

न्यायिक बेंच ने सहकारी बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका और डिफ़ॉल्ट के कारण उन्हें होने वाले वित्तीय जोखिमों को स्वीकार किया।

ALSO READ -  कॉलेजियम द्वारा नामों को दोहराए जाने के बाद भी नामों को मंज़ूरी न देने पर 'केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन', CONTEMPT PETITION दायर-

अदालत ने कहा कि बैंक जनता के पैसे से सौदा करते हैं और इसलिए, वे सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत के अधीन हैं और बैंक और वित्तीय संस्थान बकाया ऋणों की शीघ्र वसूली के लिए कठोर कार्रवाई करने के लिए बाध्य हैं। यहां तक कि ऐसी वसूली के लिए न्यायिक हस्तक्षेप भी अब वैधानिक रूप से कम कर दिया गया है और बैंक खुद ही ऐसा करते हैं और 2002 अधिनियम (SARFAESI) अन्य बातों के साथ-साथ इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनाया गया था।

कोर्ट ने अनियंत्रित लोन प्रैक्टस और ओवरड्यू लोन के कारण दिवालियापन का सामना करने वाले अन्य सहकारी बैंकों का उदहारण दिया।

न्यायलय ने कहा –

“प्रतिवादी बैंक की ओर से उपस्थित विद्वान सीनियर एडवोकेट का यह तर्क देना उचित है कि याचिकाकर्ता की साख, जैसा कि इन कार्यवाहियों के रिकॉर्ड से परिलक्षित होता है, उसकी अविश्वसनीयता को प्रदर्शित करता है।” इसके अलावा, अदालत ने याचिकाकर्ता के महामारी के कारण वित्तीय कठिनाई के दावों और ऋण चुकौती के लिए संपत्ति बेचने के उसके प्रयासों पर भी चर्चा की।

अस्तु कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि प्रतिवादी के पास विकल्प उपलब्ध है कि वह बिना किसी देरी के कानून के अनुसार कठोरतापूर्वक वसूली प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ सकते है।

केस टाइटल – एन रवींद्रनाथ कामथ और श्री सुब्रमण्येश्वर सहकारी बैंक लिमिटेड और अन्य
केस नंबर – रिट पेटिशन नंबर 3791/2021

Translate »
Scroll to Top