क्या वक्फ अधिनियम भारत के संविधान की “मूल संरचना” (Basic Structure Doctrine) का उल्लंघन करता है?

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025—की वैधता पर उठ रहे सवाल भारत के धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक ढांचे, समता के अधिकार, और सम्पत्ति के अधिकार को सीधी चुनौती

वक्फ अधिनियम की संवैधानिकता पर विचार करने का सबसे गंभीर और गूढ़ पहलू है—क्या यह क़ानून भारत के संविधान की “मूल संरचना” (Basic Structure Doctrine) का उल्लंघन करता है?

क्या वक्फ अधिनियम भारत के संविधान की “मूल संरचना” (Basic Structure Doctrine) का उल्लंघन करता है?


🔹 सबसे पहले, “Basic Structure Doctrine” क्या है?

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:

“संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह उसकी मूल संरचना को नष्ट नहीं कर सकती।”

🔑 मूल संरचना में कौन-कौन से तत्व शामिल हैं?

  1. संवैधानिक सर्वोच्चता
  2. न्यायपालिका की स्वतंत्रता
  3. कानून का शासन (Rule of Law)
  4. धर्मनिरपेक्षता (Secularism)
  5. समानता (Equality)
  6. न्यायिक समीक्षा का अधिकार
  7. संविधान के तहत मौलिक अधिकार

🔍 क्या वक्फ अधिनियम इनमें से किसी का उल्लंघन करता है?

🟠 1. धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है – राज्य को किसी धर्म के प्रति विशेष झुकाव नहीं रखना चाहिए।

  • प्रश्न:
    वक्फ अधिनियम केवल इस्लाम धर्म के धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों को केंद्रीकृत सरकारी सहायता और नियंत्रण प्रदान करता है।
  • विपरीत तर्क:
    मंदिरों के लिए अलग राज्य कानून हैं; फिर भी, केंद्र स्तर पर ऐसा कानून केवल वक्फ के लिए है।

📌 नतीजा: एक धर्म को संस्थागत रूप से विशेषाधिकार देना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को कमजोर करता है।


🟠 2. समानता और कानून का शासन (Article 14, Rule of Law)

  • वक्फ अधिनियम वक्फ बोर्ड को “quasi-judicial” शक्तियाँ देता है—जैसे कि संपत्ति को वक्फ घोषित करना—बिना अदालत की समीक्षा के।
  • वक्फ ट्रिब्यूनल की कार्यवाही पारदर्शी या पूरी तरह न्यायिक नहीं मानी जाती।
  • आम नागरिक के पास अक्सर उच्च न्यायालय तक जाने का सीधा रास्ता नहीं होता।
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📌 नतीजा: यह “Rule of Law” और समान न्याय की अवधारणा का सैद्धांतिक उल्लंघन माना जा सकता है।


🟠 3. न्यायिक समीक्षा का अधिकार (Judicial Review)

  • वक्फ अधिनियम की धारा 85:
    “वक्फ ट्रिब्यूनल के निर्णय को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती” — यह बहुत ही आपत्तिजनक प्रावधान है।

📌 नतीजा: यह न्यायपालिका के मूल अधिकार Judicial Review को सीमित करता है—जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।


🟠 4. संपत्ति का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 300A, Due Process)

  • वक्फ अधिनियम की कार्यवाही से नागरिक बिना न्यायिक प्रक्रिया के अपनी ज़मीन खो सकते हैं।
  • न कोई समुचित नोटिस, न निष्पक्ष सुनवाई—बल्कि प्रशासनिक रिकॉर्ड के आधार पर संपत्ति पर कब्ज़ा हो सकता है।

📌 नतीजा: यह संविधान के “Due Process” के सिद्धांत और व्यक्ति की कानूनी सुरक्षा को कमजोर करता है।


🧾 निष्कर्ष: क्या वक्फ अधिनियम Basic Structure Doctrine का उल्लंघन करता है?

सिद्धांतसंभावित उल्लंघन
धर्मनिरपेक्षताहाँ – केवल इस्लाम धर्म को संस्थागत लाभ
समानताहाँ – एक धर्म के लिए विशेष प्रक्रिया
Rule of Lawहाँ – कानून से ऊपर बोर्ड को शक्तियाँ
Judicial Reviewहाँ – ट्रिब्यूनल को सर्वोच्च बना देना
संपत्ति का अधिकारआंशिक – प्रक्रिया न्यायसंगत नहीं है

➡️ अतः, यदि इन पहलुओं को न्यायालय मान्यता देता है, तो यह कहा जा सकता है कि वक्फ अधिनियम (विशेषकर 2025 संशोधन) संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है, और इसे निरस्त किया जा सकता है।

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