‘शादी का दोहरा वादा’, दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यक्ति के खिलाफ IPC धारा 376 और 506 के तहत का आरोप तय करने का दिया आदेश

‘शादी का दोहरा वादा’, दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यक्ति के खिलाफ IPC धारा 376 और 506 के तहत का आरोप तय करने का दिया आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि उस व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोप तय किए जाएं, जिसने एक विवाहित महिला के साथ संबंध बनाए थे, क्योंकि उसने कथित तौर पर महिला और उसके पति से वादा किया था कि तलाक हो जाने के बाद वह उससे शादी करेगा। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि इस मामले में आरोप ‘शादी का दोहरा वादा’ प्रतीत होता है, क्योंकि पुरुष ने न केवल महिला को आश्वासन दिया था कि वह उससे शादी करेगा, बल्कि उसके पति को भी ऐसा ही आश्वासन दिया था क‍ि वह तलाक के बाद उसको (पत्‍नी) और उसके व‍िवाह से हुए बच्‍चे को भी अपने साथ रखने का वादा क‍िया था।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने टिप्पणी की, “इस प्रकार यह शादी के दोहरे वादे का मामला है, यानी शिकायतकर्ता के साथ-साथ उसके पति और परिवार से भी। अगर उसने उससे वादा नहीं किया होता या उसका प्रतिनिधित्व नहीं किया होता, तो वह इसमें शामिल नहीं होती।” उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।” अदालत ने कहा कि आरोपी ने न केवल शिकायतकर्ता बल्कि उसके कानूनी रूप से विवाहित पति और परिवार के प्रति भी प्रतिबद्धता जताई थी, जिससे यौन संबंध बनाने के शिकायतकर्ता के फैसले पर काफी प्रभाव पड़ा।

न्यायमूर्ति ने कहा क‍ि यह आश्चर्यजनक रूप से प्रतिवादी नंबर 2 (आरोपी) ने स्वीकार क‍िया था न केवल याचिकाकर्ता (शिकायतकर्ता महिला) को बल्कि उसके कानूनी रूप से विवाहित पति और उसके परिवार को भी शादी का वादा किया था कि वह तलाक के बाद उससे शादी करेगा। केवल शादी ही नहीं, बल्‍क‍ि उससे पैदा हुए बच्चों और उसके कानूनी रूप से विवाहित पति की भी देखभाल करेगा।

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हाईकोर्ट ने कहा क‍ि आरोपी पुरुष ने पहले वादा किया था कि वह महिला से शादी करेगा और इस वादे पर अमल करते हुए महिला और उसके पति ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया। अदालत ने कहा कि ऐसे वादे पर महिला ने आरोपी के साथ संबंध बनाएं। कोर्ट ने कहा क‍ि इस प्रकार यह शादी के दोहरे वादे का मामला है, यानी शिकायतकर्ता के साथ-साथ उसके पति और परिवार से भी वादा क‍िया था। अगर उसने उससे वादा नहीं किया होता या उसका प्रतिनिधित्व नहीं किया होता, तो वह उसके साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाती।

मंगलसूत्र पर हाईकोर्ट की क्‍या है राय?

इतना ही नहीं आरोपी ने शिकायतकर्ता महिला के नाम के पहले अक्षर वाले मंगलसूत्र का पेमेंट भी खुद ही क‍िया था। इस पर कोर्ट ने कहा क‍ि यह आरोपी व्यक्ति के इरादे और महिला से शादी करने के वादे को भी दर्शाता है। जस्‍ट‍िस ने कहा क‍ि कहने की जरूरत नहीं है, भारत में कई महिलाओं के लिए मंगलसूत्र एक आभूषण नहीं है, बल्कि अपने साथी के साथ प्यार, पवित्र मिलन और जीवन भर साथ रहने के आश्वासन का प्रतीक है। अदालत ने कहा, मुकदमे के दौरान यह साबित करना होगा कि क्या यह शादी करने के वादे का उल्लंघन था या यौन संबंध स्थापित करने के लिए शादी करने का झूठा वादा था। इसलिए, अदालत ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया है। यह आदेश शिकायतकर्ता महिला द्वारा आरोपी को आरोप मुक्त करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर पारित किया गया था।

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दोस्‍त थे दोनों फ‍िर अलग-अलग हुई शादी-

बताया गया कि महिला और आरोपी दोस्त थे। हालांकि, साल 2011 में उन्होंने अलग-अलग पार्टनर्स से शादी कर ली। महिला अपने पति के साथ भारत में रही, जबकि आरोपी अपनी पत्नी के साथ कनाडा में बस गया। 2016 में, वह फिर से एक-दूसरे के संपर्क में आए और इस समय तक दोनों अपने मौजूद शादी से खुश नहीं थे। शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया कि शुरू से ही जब वे फिर से एक-दूसरे के संपर्क में आए, तो आरोपी ने उससे शादी करने की इच्छा व्यक्त की और ऐसी शादी की उम्मीद करते हुए, उन्होंने शारीरिक संबंध स्थापित किए। हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि आरोपी बाद में मुकर गया और केवल यौन संबंध के लिए अपनी प्राथमिकता व्यक्त की। 20 मई 2021 को उसने महिला को फोन किया और कहा कि वह उससे शादी नहीं कर सकता क्योंकि उनका रिश्ता विषाक्त हो गया है। इसके बाद महिला ने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

सत्र न्यायालय ने द‍िया था ये फैसला-

सत्र न्यायालय ने अंततः आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि यह शादी करने के वादे के उल्लंघन का मामला है, न कि शादी करने का झूठा वादा है। हालांकि, हाईकोर्ट ने माना कि आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री थी। हाईकोर्ट ने जारी आदेश में कहा है क‍ि उसके मद्देनजर, सत्र न्यायालय द्वारा दिनांक 08-06-2023 को पारित आदेश जिसके आधार पर आरोपी को बरी कर दिया गया।

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हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया था, और सत्र न्यायालय को आदेश द‍िया है क‍ि वह आरोपी के ख‍िलाफ दोबारा से आरोप-तय करे। इतना ही नहीं आईपीसी की धारा 376/506 के तहत 2 कानून के अनुसार मामले को आगे बढ़ाएं।

केस शीर्षक – X बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) और एएनआर

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