जनता के रोष के कारण डाबर को करवा चौथ का विज्ञापन को लेना पड़ा वापस – ज‌स्टिस डीवाई चंद्रचूड़

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने भाषण में युवाओं को लैंगिक अधिकारों के प्रति जागरूक करने की जरूरत को रेखांकित किया।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूण ने शनिवार को एक कार्यक्रम में डाबर के हालिया विज्ञापन विवाद पर टिप्पणी की। एक समारोह में उन्होंने कहा कि “जनता के रोष” के कारण विज्ञापन को हटाना पड़ा।

जानकारी हो कि डाबर के विज्ञापन में लेस्‍बियन जोड़े को करवा चौथ मनाते दिखाया गया था। राष्ट्रीय महिला आयोग के सहयोग से नालसा द्वारा कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों के राष्ट्रव्यापी शुभारंभ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम, जिसका विषय ‘कानूनी जागरूकता के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण’ था, में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “आप सभी को उस विज्ञापन के बारे में पता होगा, सिर्फ दो दिन पहले जिसे एक कंपनी को हटाना था। यह एक समलैंगिक जोड़े के करवा चौथ मनाने का विज्ञापन था। इसे जनता के रोष के आधार पर वापस लेना पड़ा !”

हटाया गया विज्ञापन-डाबर ने लेस्बियन कपल वाले विज्ञापन को हटा लिया है

FMCG कंपनी डाबर (Dabur) ने भारी विवाद के चलते अपने लेस्बियन कपल वाले विज्ञापन को हटा लिया है। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विज्ञापन को “आपत्तिजनक” बताते हुए डाबर को कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी थी, जिसके कुछ घंटों बाद ही कंपनी ने इसे हटाने का फैसला किया। मिश्रा ने डाबर के इस विज्ञापन पर सवाल उठाते हुए कहा, “आज वे समलैंगिकों को करवा चौथ का व्रत तोड़ते हुए दिखा रहे हैं… कल वे दो लड़कों को फेरा लेते हुए, शादी करते हुए दिखा सकते हैं।” मिश्रा ने आगे कहा कि उन्होंने डीजीपी को इस विज्ञापन की जांच करने और कंपनी से इसे हटाने के लिए कहने का निर्देश दिया है।

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विवाद के बाद डाबर इंडिया ने विज्ञापन वापस ले लिया था और “अनजाने में लोगों की भावनाओं को आहत करने” के लिए बिना शर्त माफी मांगी थी।
कंपनी ने जारी बयान में कहा, “डाबर एक ब्रांड के रूप में विविधता, समावेश और समानता के लिए प्रयास करता है, और हम गर्व से अपने संगठन और अपने समुदायों के भीतर इन मूल्यों का समर्थन करते हैं। हम समझते हैं कि हर कोई हमसे सहमत नहीं हो सकता और हम अलग राय रखने वालों का सम्मान करते हैं। हमारा इरादा किसी भी विश्वास, रीति-रिवाजों, परंपराओं और धर्म को ठेंस पहुंचाना नहीं है।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि महिलाओं के अधिकारों के बारे में कानूनी जागरूकता केवल महिलाओं के लिए एक मामला नहीं है- “जागरूकता केवल एक महिला का मुद्दा नहीं है। महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता वास्तव में तभी सार्थक हो सकती है, जब हमारे देश में पुरुषों की युवा पीढ़ी के बीच जागरूकता पैदा की जाए। क्योंकि मेरा मानना ​​है कि महिलाओं के अधिकारों से वंचित रखे जाने का अगर हमें जवाब हल खोजना है तो पुरुषों और महिलाओं दोनों की मानसिकता में बदलाव करना होगा।”

संविधान एक परिवर्तनकारी दस्तावेज है, जो पितृसत्ता में निहित संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने का प्रयास करता है-

जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, “हमारा संविधान एक परिवर्तनकारी दस्तावेज है, जो पितृसत्ता में निहित संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने का प्रयास करता है। यह महिलाओं के भौतिक अधिकारों को सुरक्षित करने, उनकी गरिमा और समानता की सार्वजनिक पुष्टि करने का एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है। महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को पूरा करने के लक्ष्य को पाने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम जैसे कानून बनाए गए हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में अपने जीवन में हम हर दिन महिलाओं के खिलाफ अन्याय को देखते हैं। वास्तविक जीवन की स्थितियां दिखाती हैं कि कानून के आदर्शों और समाज की वास्तविक स्थिति के बीच विशाल अंतर है।”

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