समलैंगिक केस: पूर्व न्यायाधीशों ने जताई चिंता, कहा- ‘राइट टू चॉइस के नाम पर पश्चिमी सभ्यता को थोपने की कोशिश’

Estimated read time 1 min read

‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका की दायर

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने संबंधित मामले को सुनवाई के लिए पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया है। इस मामले पर संवैधानिक बेंच इस मामले की 18 अप्रैल से सुनवाई करेगी।

देश में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकरचल रही बहस में अब जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी शामिल हो गया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की है। इस याचिका में जमीयत की ओर से मामले में पक्षकार बनने की मांग की गई है।

वही पूर्व न्यायाधीशों का एक समूह ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के मुद्दे पर एक बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है, “हम सम्मानपूर्वक समाज के जागरूक सदस्यों से आग्रह करते हैं, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह के मुद्दे को उठा रहे हैं, वे भारतीय समाज और संस्कृति के सर्वोत्तम हित में ऐसा करने से परहेज करें।”

जमीयत ने अपनी हस्‍तक्षेप की अर्जी में कहा है कि विपरीत लिंगों का विवाह भारतीय कानूनी शासन के लिए मुख्‍य है। विवाह की अवधारणा “किसी भी दो व्यक्तियों” के मिलन की सामाजिक-कानूनी मान्यता से कहीं अधिक है। इसकी मान्यता स्थापित सामाजिक मानदंडों के आधार पर है। ये नव विकसित मूल्य प्रणाली पर आधारित परिवर्तनशील धारणाओं के आधार पर बदलती नहीं रह सकती है।

ALSO READ -  महिला पर अलग-अलग लोगों के खिलाफ पांच झूठे रेप केस दर्ज कराने का आरोप, HC ने महिला को राहत देने में असमर्थता जताई है

आगे क्या कहा हस्तक्षेप याचिका में?-

इसके साथ ही जमीयत ने अपनी अर्जी में कहा कि कई वैधानिक प्रावधान हैं जो विपरीत लिंग के बीच विवाह सुनिश्चित करते हैं। इसमें कानूनी प्रावधानों के साथ विरासत, उत्तराधिकार, और विवाह से उत्पन्न कर देनदारियों से संबंधित विभिन्न अधिकार हैं। उन्‍होंने कहा कि दो विपरीत लिंगों के बीच विवाह की अवधारणा “मूल विशेषता” की तरह है।

समलैंगिक विवाह की मांग का विरोध करते हुए जमीयत की अर्जी में कहा गया है कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाएं विवाह की अवधारणा को कमजोर कर रही हैं, क्‍योंकि विवाह स्थिर संस्था है।

आवेदन में तर्क ‌दिया गया, “यह उल्लेख करना भी उचित है कि अधिकांश पूर्वी देश “समान-लिंग विवाह ‘को मान्यता नहीं देते हैं।” आवेदन में यह दलील देने के लिए कि समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जा सकती विभिन्न धर्मों पर भी भरोसा किया गया है। आवेदन में कहा गया है, “हिंदू धर्म में विवाह को एक धार्मिक संस्कार के रूप में परिभाषित किया गया है… हिंदू धर्म में विवाह का उद्देश्य केवल नहीं है भौतिक सुख या संतान नहीं बल्‍कि आध्यात्मिक उन्नति भी है। यह सोलह संस्कारों में से एक है।”

पूर्व न्यायाधीशों ने कहा ‘थोपी जा रही पश्चिमी संस्कृति’-

बयान में कहा गया है, “इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय विचार कर रहा है और हाल के दिनों में इसे संविधान पीठ के पास भेजे जाने के बाद इसमें तेजी आई है। क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर समाज के विभिन्न तबकों से आने वाले देश के लोगों को इस पश्चिमी दृष्टिकोण से गहरा धक्का लगा है। इसे परिवार व्यवस्था (फैमिली सिस्टम) को कमजोर करने के लिए भारतीय समाज और संस्कृति पर थोपा जा रहा है। कई न्यायविदों, विचारकों और बुद्धिजीवियों ने परिवार, जो समाज की मूल इकाई है, पर इसके नतीजों पर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की है।”

ALSO READ -  बलात्कारी '4 साल की पीड़िता' को जिंदा छोड़ने के लिए "काफी दयालु" था, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने उम्रकैद की सजा को किया कम

‘भारत में विवाद केवल दो व्यक्तियों के बीच नहीं’-

इसमें आगे कहा गया है, “भारत में विवाह न केवल दो व्यक्तियों के बीच बल्कि दो परिवारों के बीच एक सामाजिक-धार्मिक संस्कारात्मक संघ है। यह अनादि काल से स्पष्ट है कि विवाह का उद्देश्य केवल भागीदारों की शारीरिक नजदीकियां नहीं है, बल्कि यह इससे भी बहुत आगे जाता है। यह संतानोत्पत्ति के माध्यम से समाज के विकास के लिए अपरिहार्य है।”

‘अदालत को कमजोर करने की कोशिश का हो विरोध’-

बयान में कहा गया है, “दुर्भाग्य से विवाह के सभ्यतागत महत्व के बारे में कोई ज्ञान और सम्मान न रखने वाले कुछ समूहों ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। एक महान और समय की कसौटी पर खरी उतरी संस्था को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का समाज द्वारा मुखर विरोध किया जाना चाहिए।”

‘सदियों तक होते रहे भारत की सांस्कृतिक सभ्यता पर हमले’-

“भारतीय सांस्कृति सभ्यता पर सदियों से लगातार हमले होते रहे हैं, लेकिन तमाम बाधाओं के बावजूद वह बची रही। अब स्वतंत्र भारत में यह अपनी सांस्कृतिक जड़ों पर पश्चिमी विचारों, दर्शनों और प्रथाओं के आरोपण का सामना कर रही है, जो इस राष्ट्र के लिए बिल्कुल भी व्यवहार्य नहीं है।”

‘राइट टू चॉइस के नाम पर पश्चिमी सभ्यता को थोपने की कोशिश’-

बयान में आगे कहा गया है, “पश्चिम जिन गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है, उन्हें भारत में कुछ निहित समूहों द्वारा पसंद के अधिकार (राइट टू चॉइस) के नाम पर एक संस्था के रूप में न्यायपालिका के दुरुपयोग के जरिए आयात करने की कोशिश की जा रही है।”

You May Also Like