भ्रष्टाचार मामले में दोषी सरकारी कर्मचारी को सुप्रीम कोर्ट से झटका, दोषसिद्धि पर रोक से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट

भ्रष्टाचार मामले में दोषी सरकारी कर्मचारी को सुप्रीम कोर्ट से झटका, दोषसिद्धि पर रोक से किया इनकार

नई दिल्ली | विधि संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दोषी ठहराए गए एक सरकारी कर्मचारी की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने दोषसिद्धि पर रोक की मांग की थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में अपवादस्वरूप या विशेष परिस्थितियां न होने पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता

न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कहा:

“सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में K.C. Sareen बनाम CBI (2001) और CBI बनाम M.N. शर्मा (2008) में यह सिद्धांत स्थापित किया है कि जिन सरकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराया गया हो, उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने से न्यायपालिका को परहेज़ करना चाहिए।”


मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, जो कि एक सरकारी कर्मचारी हैं, को धारा 7, 12 और 13(1)(d) सहपठित धारा 13(2) के तहत अवैध रिश्वत लेने के आरोप में दोषी ठहराया गया। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें तीन साल की कठोर कारावास तथा ₹5,000 जुर्माने की सजा सुनाई थी, जो कि धारा 13(1)(d) के तहत थी, जबकि धारा 7 व 12 के तहत दो साल की सजा दी गई थी। दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं।

गुजरात हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई करते हुए 3 अप्रैल 2023 को सजा पर रोक (सस्पेंशन ऑफ सेंटेंस) दे दी थी, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया था कि इससे दोषसिद्धि पर कोई असर नहीं पड़ेगा और दोषसिद्धि यथावत रहेगी

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए दलील दी कि दोषसिद्धि पर रोक न लगने से उनकी सेवा और सेवानिवृत्ति लाभों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, इसलिए इसमें हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।

लेकिन पीठ ने इसे खारिज करते हुए कहा:

“सिर्फ सेवा लाभों के हनन का आधार बनाकर दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह मामला भ्रष्टाचार का है और ऐसे मामलों में विशेष सतर्कता और न्यायिक अनुशासन अपेक्षित है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में ऐसा कोई असाधारण कारण या कानूनी त्रुटि नहीं दिखती, जो हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप को उचित ठहराए।


निष्कर्ष

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया और हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।

मामला: Raghunath Bansropan Pandey बनाम गुजरात राज्य
याचिका संख्या: SLP (Crl.) Diary No. 4666 of 2025

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