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महिला का विवाह प्रलोभन उपरांत यौन संबंध स्थापित करना और संबंध तोड़ देना, क्या यह बलात्कार नहीं होगा? ‘जेंडर न्यूट्रल’ पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका –

यौन उत्पीड़न (354A-354D), रेप (धारा 376), आपराधिक धमकी (धारा 506), महिलाओं के मर्यादा का अपमान (धारा 509), धारा 420 और महिलाओं के प्रति क्रूरता (498A)

महिलाओं Women के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता INDIAN PENAL CODE के किये गए प्रावधानों पर वर्तमान समयास्थिति में पुनर्विचार और संशोधन के निर्देश की मांग करते हुए दो विधि छात्रों ने और एक अन्य याचिकाकर्ता ने भारत के शीर्ष कोर्ट का Supreme Court का रुख किया।

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court में प्रस्तुत याचिकाओं को जानने से ये बात उभर कर सामने आती है कि वर्तमान समय में देश कि महानगरीय स्थानों पर ‘जेंडर नयूटरल GENDER NEUTRAL’ कि मांग तेज हो गई है जबकि सब रूरल और रूरल क्षेत्रों में आज भी स्थिति वैसे ही है।

याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी IPC के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कानूनों पर पुनर्विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट में यौन उत्पीड़न (354A-354D), रेप (धारा 376), आपराधिक धमकी (धारा 506), महिलाओं के मर्यादा का अपमान (धारा 509) और महिलाओं के प्रति क्रूरता (498A) को जेंडर न्यूट्रल बनाने के लिए एक याचिका दायर की गई है-

इसमें यौन उत्पीड़न (354A-354D), रेप (धारा 376), आपराधिक धमकी (धारा 506), महिलाओं के मर्यादा का अपमान (धारा 509) और महिलाओं के प्रति क्रूरता (498A) शामिल है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल अर्जी में कहा है कि पुरुषों के जीवन का मामला है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि ऐसे प्रावधान जेंडर के आधार पर भेदभाव करते हैं और पुरुषों की समानता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करते हैं और इसलिए ये संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 (1) का उल्लंघन है।

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कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में लखनऊ के हालिया मामले का हवाला देते हुए जहां एक लड़की को कैब ड्राइवर को थप्पड़ मारते देखा गया था याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि महिलाओं द्वारा यौन अपराध कानूनों का दुरुपयोग बढ़ रहा है. पुरुषों की गरिमा का अपमान किया जा रहा है. याचिकाकर्ता अनम कामिल और श्रीकांत प्रसाद के मुताबिक ये कानून 150 साल पहले बनाए गए थे जब वास्तव में महिलाओं के उत्थान के लिए ऐसे कानूनों की जरूरत थी. लेकिन अब उनकी जरूरत नहीं है क्योंकि अब महिलाएं विकसित और सशक्त हैं।

सुप्रीम कोर्ट में आईपीसी की धारा 420 को जेंडर नयूटरल GENDER NEUTRAL बनाने के लिए एक याचिका दायर की गई है-

नागराजू के द्वारा एक विशेष अवकाश याचिका SLP दायर करके कानून के कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मांगे गए हैं, जिनमें यह सवाल प्रमुख है कि यदि कोई महिला शादी का वादा करके यौन संबंध बनाए और फिर लंबे रिश्ते के बाद संबंध तोड़ दे तो क्या यह बलात्कार होगा?

प्रश्न इस तरह हैं-

  1. क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत परिभाषित अपराध लिंग तटस्थ (GENDER NEUTRAL) है?
  2. क्या शादी के वादे पर स्थापित संबंध अगर किसी महिला द्वारा भंग किए जाते हैं तो धोखा और बलात्कार होगा?
  3. “क्या लंबे रिश्ते के बाद कमतर जाति के आधार पर शादी करने से इनकार करना अपराध है?
  4. क्या कानून के तहत लिंग-पहचान और लिंग के बीच कोई अंतर है?

याचिकाकर्ता ने कर्नाटक उच्च न्यायालय KERNATAKA HIGH COURT के एक आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि 2016 में एक महिला के खिलाफ उसके द्वारा दायर एफआईआर FIR को खारिज कर दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए ये सवाल पूछे हैं।

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मामला इस प्रकार से है –

नागराजु की शिकायत के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 506 और एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (एक्स) के तहत महिला के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई। याचिका के अनुसार, महिला एक मंदिर के प्रमुख पुजारी की बेटी थी। याचिकाकर्ता की लड़की से दोस्ती हुई और लड़की ने उसे प्रेम प्रस्ताव दिया। तब याचिकाकर्ता ने उसे समझाने की कोशिश की कि वे दोनों शादी नहीं कर सकते, क्योंकि वह अनुसूचित जाति का है और लड़की उच्च जाति में पैदा हुई थी। हालांकि लड़की ने याचिकाकर्ता से वादा किया कि जाति उनके विवाह में बाधा नहीं बनेगी। इसके बाद, याचिका में आरोप लगाया गया, महिला ने उसके साथ यौन संबंध बनाने पर जोर दिया और उसके विरोध के बावजूद यौन संबंध बनाने शुरू कर दिए। एक बार जब प्रतिवादी को मैसूर में नौकरी मिल गई, तो उसका व्यवहार बदल गया, उसने याचिकाकर्ता की कॉल को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया और जब भी वह महिला से बात करता तो वह बहुत अशिष्टता से बात करती।

याचिकाकर्ता के अनुसार, जब उसने महिला से शादी के बारे में कहा तो उसने कहा “हम तुम लोगों को हमारे घर के शौचालय भी साफ करने की अनुमति नहीं देते।

“प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता से महिला ने कथित तौर पर कहा कि वह उससे शादी करने के लिए “योग्य” नहीं है और उसे जान से मारने की धमकी दी क्योंकि, उसके पिता इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति थे।

नागराजू की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद महिला ने अग्रिम जमानत अर्जी दायर की, जिसे जिला जज DISTRICT JUDGE ने खारिज कर दिया, जिसमें उल्लेख किया कि धोखाधड़ी का एक प्रथम दृष्टया मामला सामने आया है।

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तत्पश्चात उच्च न्यायालय HIGH COURT के समक्ष महिला ने अपना आवेदन दायर किया गया, जिस पर महिला को राहत मिली।

वर्तमान स्पेशल लीव पेटिशन SLP में उच्च न्यायलय HIGH COURT के इस आदेश को चुनौती दी गई है।

याचिकाकर्ता के वकील सैयद कामरान अली द्वारा प्रस्तुत याचिका इस प्रकार है- “कि वर्तमान याचिका आपराधिक न्यायशास्त्र में व्याप्त असमानताओं को सामने लाती है जो एक लिंग Gender के व्यक्ति के लिए न्याय का अधिकार उसी आधार पर अस्वीकार करती है जैसा कि दूसरे लिंग के व्यक्ति को प्राप्त होता है।

वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता उत्तरदाता नंबर 1 के द्वारा उसके साथ किए गए दमन, अन्याय के खिलाफ आश्रय चाहता है।

आगे यह कि, इस याचिका के पीछे का उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं को उनकी सहमति के बिना किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किए जाने के खिलाफ उनके अधिकारों की रक्षा करना है। इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि किसी भी शारीरिक संबंध में यदि एक बार सहमति का तत्व निकाल दिया जाए तो चाहे उनके लिंग कुछ भी हों, अन्य व्यक्ति द्वारा यौन उल्लंघन या बलात्कार का मामला बनता है।

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