HC ने कहा कि Article 226 में निहित शक्तियां CrPC की धारा 482 की तुलना में बहुत अधिक, समझौते के आधार पर FIR रद्द की जाती है –

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इंडियन पेनल कोड की धारा 323 ए, 504 ए, 506 कंपाउंडेबल हैं। धारा 376 ए, 354 यहां पर लागू नहीं होतीं, क्योंकि पीड़ित की चिकित्सकीय जांच नहीं की गई है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एक बार पार्टियों ने फैसला किया है कि वे इस मुकदमे को लड़ना नहीं चाहती हैं, दर्ज प्राथमिकी निरस्त की जानी चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट Allahabad High Court ने धारा 376, 354, 323 ए, 504, 506 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 34 के तहत मुरादाबाद के मैनाथर थाने में दर्ज प्राथमिकी को दोनों पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने इकबाल व दो अन्य की याचिका पर कहा कि विपक्षियों में एक पक्ष ने मामले से हटने का निर्णय लिया है।

इंडियन पेनल कोड IPC धारा 323 ए, 504 ए, 506 कंपाउंडेबल हैं। आईपीसी की धारा 376 ए, 354 यहां पर लागू नहीं होतीं, क्योंकि पीड़ित की चिकित्सकीय जांच नहीं की गई है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एक बार पार्टियों ने फैसला किया है कि वे इस मुकदमे को लड़ना नहीं चाहती हैं, दर्ज प्राथमिकी निरस्त की जानी चाहिए।

याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी के वकील ने संयुक्त रूप से कहा कि पार्टियों के बीच वैवाहिक विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है और प्रतिवादी मामले पर आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं हैं।

एडिशनल गवर्न्मेंट एडवोकेट राज्य सरकार द्वारा जांच पत्र पेश किए गए, जिसमें पता चला कि आईपीसी की धारा 376 ए, 354 के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है।

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कोर्ट द्वारा तथ्यों के अवलोकन के बाद कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निहित शक्तियां सीआरपीसी की धारा 482 की तुलना में बहुत अधिक हैं और इसलिए उक्त शक्तियों का प्रयोग करके यह न्यायालय एफआईआर को रद्द कर सकता है।

केस टाइटल – IQBAL AND 2 OTHERS Vs State of U.P. AND 2 others
केस नम्बर – CRLP/7878/2022

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