इलाहाबाद हाई कोर्ट Allahabad High Court ने एक सरकारी शिक्षक और एक मदरसा शिक्षक के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार कर दिया। उनके पास से प्रतिबंधित मांस और 16 जीवित मवेशी बरामद किए गए थे ।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने परवेज अहमद व तीन अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ संज्ञेय अपराध बनता है।
क्या है मामला-
आरोपियों के खिलाफ मऊ जिले में गोहत्या रोकथाम अधिनियम, 1955 की धारा 3/5/8 और धारा 11, जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1979 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 7/8 में मामला दर्ज कराया गया था। याचियों ने इसे रद्द करने की मांग की थी। मामले में एक याची राज्य के शिक्षा विभाग में सहायक शिक्षक है, जबकि दूसरा मदरसा दारुल उलूम गौसिया कस्बा सलेमपुर में सहायक शिक्षक के रूप में कार्यरत है, जबकि तीसरा याची दवा की दुकान का मालिक चौथा याची हाफिज कुरान है।
याचिकाकर्ता का निवेदन था कि फोरेंसिक जांच प्रयोगशाला Foreinsic Lab Report से प्राप्त रिपोर्ट में यह खुलासा नहीं किया गया था कि विश्लेषण के लिए भेजा गया नमूना गाय का था। गोहत्या रोकथाम अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनता था। दूसरी ओर राज्य के वकील ने तर्क दिया कि प्राथमिकी में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि 16 जीवित मवेशियों में से 7 भैंस, 1 गाय, 2 भैंस के बछड़े, 5 भैंस के बछड़े, और एक गाय का बछड़ा शामिल है।
इसके अलावा 20 किलो प्रतिबंधित मांस भी बरामद किया गया था। राज्य द्वारा तर्क दिया गया कि यह कहना गलत था कि एफएसएल रिपोर्ट ने आवेदकों को क्लीन चिट दे दी, क्योंकि आवेदकों और अन्य सह-आरोपियों के कब्जे में 16 मवेशी पाए गए थे और उनके पास कोई लाइसेंस नहीं था। आरोपियों द्वारा अवैध कसाईखाना चलाने का भी मामला दर्ज हैं।