एक बलात्कार पीड़िता की ओर से एएसजे, रोहिणी अदालत के आदेश के खिलाफ धारा 476 और 506 आईपीसी की प्राथमिकी दर्ज करवा दी-
लोअर कोर्ट और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विरुद्ध आरोप लगाने वाली एक अपील याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि न्यायपालिका आलोचना से अछूती नहीं है, लेकिन इस तरह की आलोचना विकृत तथ्यों या जानबूझकर सम्मान कम करने के लिए गलत बयानी पर आधारित नहीं हो सकती है।
याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह के खिलाफ नोटिस जारी करते न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने पूछा क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए। पीठ ने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोप सिर्फ हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश पर नहीं, बल्कि कई न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा और कामकाज पर सीधा हमला है। न्यायाधीशों की यह निंदा न्याय के प्रशासन को प्रभावित कर सकती है।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह के खिलाफ नोटिस जारी करते पूछा क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए।
पीठ ने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोप सिर्फ हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश पर नहीं, बल्कि कई न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा और कामकाज पर सीधा हमला है। न्यायाधीशों की यह निंदा न्याय के प्रशासन को प्रभावित कर सकती है।
एक न्यायाधीश पर किए गए इस तरह के अनुचित हमले को यह अदालत नजरअंदाज नहीं कर सकत है। पीठ ने कहा कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष न्यायपालिका होनी चाहिए।
मामला क्या है-
पूरा मामला दुष्कर्म, धमकी, षड़यंत्र रचने समेत अन्य धाराओं के तहत दर्ज मामले में रोहिणी अदालत के एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित 18 नवंबर 2021 के अंतिम आदेश से जुड़ा है। याची ने इसे चुनौती देते हुए अपील याचिका दायर की है। इस मामले में, वीरेंद्र सिंह ने एक बलात्कार पीड़िता की ओर से एएसजे, रोहिणी अदालत के आदेश के खिलाफ धारा 476 और 506 आईपीसी की प्राथमिकी दर्ज करवा दी है I
अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह ने आगे आरोप लगाया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने पीड़ित की दलीलों को दर्ज नहीं किया और यह इंगित करता है कि न्यायाधीश ने आरोपी का पक्ष लिया और मामले में उसकी व्यक्तिगत रुचि थी। सिंह ने निचली अदालत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ अपील में कई अन्य आरोप लगाए।
सुनवाई के दौरान पीठ ने अपीलकर्ता की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता से कहा कि न्यायाधीशों के विरुद्ध आरोप लगाने वाले पैराग्राफ को वापस लेकर न्यायाधीशों के खिलाफ कोई व्यक्तिगत, दागी और दुर्भावनापूर्ण आरोप लगाए बिना निचली अदालत के साथ-साथ हाई कोर्ट के निष्कर्षों को चुनौती दी जानी चाहिए।
जहाँ तक अधिवक्ता की बात है, अधिवक्ता ने अपील में संशोधन करने से इन्कार कर दिया।
पीठ ने अधिवक्ता को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही मामले को अवमानना मामले की सुनवाई करने वाली दो सदस्यीय पीठ के समक्ष आठ अगस्त को सूचीबद्ध करने को कहा।
केस टाइटल – सुश्री एम बनाम दिल्ली के एनसीटी
केस नंबर – 2022 का सीआरएल ए नंबर 107