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HC ने कहा, सरकारी वकीलों की आबद्धता की प्रक्रिया भरोसेमंद व किसी भी मनमानेपन से मुक्त होनी चाहिए

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ Allahabad High Court Lucknow Bench ने उच्च न्यायलय में सरकारी वकीलों Government Advocates की तैनाती में धांधली के आरोप वाली वर्ष 2017 में दायर जनहित याचिका Public Interest Litigation को नई याचिका के साथ 28 मार्च 2023 को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति राजन रॉय की लखनऊ खंडपीठ ने यह आदेश महेंद्र सिंह पवार की 2017 में दायर जनहित याचिका पर दिया। इसमें, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में तैनात किए गए सरकारी वकीलों की नियुक्ति में गड़बड़ी के आरोप लगाकर कानून के तहत नियुक्ति किए जाने का आग्रह किया गया था।

इसके बाद पिछ्ले साल तीन स्थानीय वकीलों ने फिर एक याचिका दायर कर लखनऊ पीठ में तैनात किए गए CSC, ACSC, स्थायी अधिवक्ता, ब्रीफ होल्डर्स की नियुक्ति सम्बंधी गत एक अगस्त के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती दी है।

पहले, कोर्ट ने बदलते वक्त के साथ राज्य सरकार की तरफ से सरकारी वकीलों की आबद्धता (तैनाती) प्रक्रिया में आवश्यक बदलाव की जरुरत बताई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को अपनी पसंद के सरकारी वकील आबद्ध करने के हक से इनकार किए बगैर कहा था कि इनकी आबद्धता को भिन्न पायदान पर देखना होगा। क्योंकि इनको सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है,जो राज्य के लोगों का धन है। ऐसे में सरकारी वकीलों की आबद्धता की प्रक्रिया भरोसेमंद व किसी भी मनमानेपन से मुक्त होनी चाहिए।

हाई कोर्ट ने इस अहम टिप्पणी के साथ महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र को सरकारी वकीलों की आबद्धता प्रक्रिया के मौजूदा सेटअप पर फिर से गौर करने और अधिक ठोस व साफ सुथरी, पारदर्शी प्रक्रिया बनाने को कहा था।

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साथ ही आदेश दिया था कि अगली सुनवाई पर नए सरकारी वकीलों की आबद्धता में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया समेत पिछले तीन बार की आबद्धता में अपनाई गई प्रक्रिया को पेश किया जाय।

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