श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में दाखिल सिविल वादों की पोषणीयता पर चल रही सुनवाई पूरी, इलाहाबाद HC ने फैसला सुरक्षित किया

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मंदिर पक्ष से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन सौरभ तिवारी और रीना एन सिंह ने इस बात पर आपत्ति जताई कि मस्जिद पक्ष की अधिवक्ता तसनीम अहमदी एक ही तरह की बहस बार-बार दोहरा रही हैं। प्रति आपत्ति के नाम पर बहस कर जानबूझकर मस्जिद पक्ष रणनीति के तहत यह सब कर रहा है ताकि न्यायालय छुट्टियों के पहले इस पर किसी भी प्रकार से कोई निर्णय न ले सके।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में दाखिल सिविल वादों की पोषणीयता पर चल रही सुनवाई शुक्रवार को पूरी हो गई। इसके बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है।

मुस्लिम पक्ष का दावा – सिविल वाद दाखिल करने की विधिक हैसियत नहीं रखते हिंदू पक्षकार-

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े 18 सिविल वादों की इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक साथ चल रही सुनवाई में मुस्लिम पक्ष ने बृहस्पतिवार को लिखित बहस दाखिल की थी। मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने कहा कि मौजूदा 18 सिविल वादों में एक भी वादी के पास प्रश्नगत संपत्ति के संबंध में वाद दाखिल करने की विधिक हैसियत नहीं है। न तो ये श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं और न ही बनारस के राजा पटनीमल, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेशदत्त और भीखनलाल के वंशज हैं। किसी भी सिविल वाद में इनके वंशजों को पक्षकार भी नहीं बनाया गया है।

न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन के पीठ ने सिविल वाद की पोषणीयता को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों की ओर दिन प्रतिदिन चल रही बहस में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता तसनीम अहमदी विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये तो शाही ईदगाह की ओर से रणवीर अहमद और वक्फ बोर्ड की ओर से अफजाल अहमद दलीलें दे रहे हैं। बृहस्पतिवार को तीन घंटे चली सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की ओर से सिविल वाद के वादियों में विधिक हैसियत पर सवाल खड़े किए गए।

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वाद की पोषणीयता पर उठाए गए थे सवाल-

दलील दी गई कि 1947 के पहले से ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर, ईदगाह के रास्ते और सीमाएं अलग-अलग हैं। मंदिर में प्रतिदिन पूजा हो रही है तो मस्जिद में नमाज पढ़ी जा रही हैं। जन्मभूमि ट्रस्ट और शाही ईदगाह प्रबंधन के बीच कोई विवाद नहीं है। दशकों बाद वादियों की ओर से बिना किसी विधिक हैसियत के सिविल वाद दाखिल किया गया, जो पोषणीय नहीं है। वादी पीड़ित पक्षकार नहीं है। निर्विवादित स्थल के धार्मिक चरित्र को जानबूझकर विवादित बनाने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, हिंदू पक्षकारों का दावा है कि श्रीकृष्ण लला विराजमान का विधिक अस्तित्व है। वह उनके भक्त हैं। इसलिए उन्हें वाद दाखिल करने का हक है।

मंदिर पक्ष ने दिया था तर्क – सरकारी दस्तावेजों में शाही ईदगाह के नाम नहीं है कोई संपत्ति

इलाहाबाद उच्च न्यायलय में बृहस्पतिवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह विवाद मामले की सुनवाई हुई थी। इस दौरान मंदिर पक्षकार की ओर से कहा गया था कि सरकारी दस्तावेजों में शाही ईदगाह के नाम से कोई संपत्ति नहीं है। ये अवैध तरीके से काबिज है। साथ ही कहा कि वक्फ संपत्ति दान में मिली संपत्ति होती है, वक्फ बोर्ड बताए कि उसे किसने विवादित संपत्ति दान में दी है। वहीं शाही ईदगाह के पक्षकार ने कहा कि इस मामले में वाद पोषणीय नहीं है।

न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की कोर्ट में वाद की पोषणीयता को लेकर सुनवाई की जा रही थी। श्रीकृष्ण जन्म भूमि मुक्ति निर्माण के अध्यक्ष व मंदिर पक्षकार आशुतोष पांडेय ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपना पक्ष रखा था। इस दौरान उन्होंने कहा कि ऑर्डर 7 नियम 11 इस मामले में लागू नहीं होता है। कहा कि 13 एकड़ जमीन लड्डू गोपाल की है। इसे कोई न बेच सकता है और न कोई इस जमीन का समझौता कर सकता है। यह पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम दर्ज है। ट्रस्ट ही बिजली का बिल और टैक्स जमा करता है।

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वक्फ बोर्ड कागजात पर चेयरमैन के फर्जी दस्तखत-

खसरा और नगर निगम के रिकॉर्ड में भी ट्रस्ट के नाम पर ही जमीन दर्ज है। सरकारी रिकॉर्ड में कहीं भी शाही ईदगाह के नाम कोई भी जमीन नहीं है। इस मामले में वर्शिप एक्ट, लिमिटेशन एक्ट, वक्फ एक्ट के अधिनियम लागू नहीं होते हैं। कहा कि वक्फ संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का मुतवल्ली होता है, जबकि ईदगाह में ऐसा नहीं है। आगे कहा कि वक्फ की तरफ से जो प्रार्थना पत्र व शपथपत्र दाखिल की गई है उसपर वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के हस्ताक्षर नहीं हैं, ये फर्जी हैं।

मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता विण्णु शंकर जैन ने पक्ष रखते हुए कहा कि विवादित संपत्ति का पूर्ण भाग पर प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधान लागू हैं। इसकी अधिसूचना 26 फरवरी 1920 को ही जारी की जा चुकी है। अब इस संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होंगे। अन्य कई दलीलें दीं थीं।

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