उच्च न्यायलय ने अपने ही पुराने फैसले को पलटा, 40 वर्ष बाद हत्या का दोषी ‘नाबालिग करार’, दोषी की उम्र 56 साल-मिले तुरंत रिहाई

उच्च न्यायलय ने अपने ही पुराने फैसले को पलटा, 40 वर्ष बाद हत्या का दोषी ‘नाबालिग करार’, दोषी की उम्र 56 साल-मिले तुरंत रिहाई

लखनऊ खंडपीठ ने कहा कि दोषी पहले ही तीन साल की जेल अवधि पूरा कर चुका है-

उच्च न्यायलय ने 40 वर्ष पुराने हत्या के एक मामले में दोषी को नाबालिग करार दिया है।

लखनऊ खंडपीठ ने कहा कि दोषी पहले ही तीन साल की जेल अवधि पूरा कर चुका है।

इसलिए उसे तुरंत रिहा किया जाए। इस तरह हाईकोर्ट ने अपने 11 अक्टूबर, 2018 के उस फैसले को भी पलटा, जिसमें उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी थी और 10 साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ दोषी सुप्रीम कोर्ट गया था।

शीर्ष कोर्ट ने जुवेनाइल मामले पर विचार करने के लिए कहा था। हाईकोर्ट से पहले अंबेडकरनगर की कोर्ट ने अपीलकर्ता को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस तरह उसे इंसाफ पाने में 40 साल लग गए। इस समय उसकी उम्र 56 साल है। यह फैसला न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की पीठ ने संग्राम की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए सुनाया।

8 जनवरी, 1981 को हुए हत्याकांड में था दोषी-

अंबेडकरनगर की एक कोर्ट ने 25 नवंबर, 1981 को राम कुमार और संग्राम को थाना क्षेत्र इब्राहिमपुर से जुड़े हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। घटना 8 जनवरी, 1981 की थी। इस फैसले के खिलाफ दोनों ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने संग्राम की अर्जी पर अंबेडकरनगर की जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड से उसकी उम्र की जांच करने को कहा था। बोर्ड ने 11 अक्टूबर, 2017 को हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट दी। कहा कि घटना के समय संग्राम करीब 15 साल का था। इसके बाद हाईकोर्ट ने 11 अक्टूबर, 2018 को फैसला सुनाया। उसने दोनों की दोषसिद्धि बरकरार रखी, लेकिन उनकी सजा उम्रकैद से बदलकर 10 साल कर दी।

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हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती-

संग्राम ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उसने कहा कि घटना के समय वह जुवेनाइल था, जिस पर बोर्ड की रिपोर्ट भी थी। हाईकोर्ट ने बिना उस पर सुनवाई किए अपील को निस्तारित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 27 अगस्त, 2021 को यह कहकर केस हाईकोर्ट को वापस भेज दिया कि जुवेनाइल की दलील पर सुनवाई करनी पड़ेगी। इसके बाद हाईकोर्ट ने फिर सुनवाई की। उसने पाया कि बोर्ड ने जो रिपोर्ट 11 अक्टूबर, 2017 को उसे भेजी थी। उसके खिलाफ न तो वादी ने और न ही राज्य सरकार ने कोई आपत्ति की।

उच्च न्याययालय ने कहा जुवेनाइल को 3 साल तक की ही सजा दी जा सकती है-

कोर्ट ने पाया कि बोर्ड ने संग्राम की 5वीं कक्षा की ट्रांसफर सर्टिफिकेट पर अपनी राय बनाई थी। इसे उक्त विद्यालय के हेडमास्टर ने साबित भी किया था। कोर्ट ने कहा कि जुवेनाइल साबित होने पर आरोपी को अधिकतम 3 साल की ही सजा दी जा सकती है। यह भी रिकार्ड से पाया कि संग्राम पहले ही 3 साल से ज्यादा समय जेल में बिता चुका है।

पीठ ने बोर्ड की राय को मंजूर करते हुए संग्राम को जुवेनाइल घोषित किया। उसने कहा कि अगर वह किसी अन्य केस में जेल में न हो, तो उसे तुरंत रिहा कर दिया जाए।

वहीं, सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि दूसरे आरोपी राम कुमार ने हाईकोर्ट के 11 अक्टूबर, 2018 के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कोई अपील नहीं दाखिल की थी। इसलिए उसके मामले पर कोई आदेश देने की जरूरत नहीं है।

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