हाईकोर्ट ने कहा कि 2 शादीशुदा लोगों का शारीरिक संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं है

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High Court Judgement In Rape Case: शादीशुदा होने के बावजूद अफेयर हो और शारीरिक संबंध बन जाएं तो वह दुष्कर्म नहीं है। रेप केस से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए मुंबई हाईकोर्ट ने विशेष टिप्पणी की। साथ ही महिला द्वारा प्रेमी के खिलाफ दर्ज कराई गई FIR भी रद्द कर दी। पीड़िता और आरोपी दोनों शादीशुदा हैं और दोनों के बच्चे भी हैं। दोनों का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है।

कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग का है मामला-

न्यायमूर्ति अनुजा प्रभु देसाई और न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की बेंच ने कहा कि 2 शादीशुदा लोगों का शारीरिक संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं है। महिला के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का पता चलने पर पति ने घर छोड़ दिया तो महिला ने प्रेमी के खिलाफ FIR करा दी। यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जबकि हालात बता रहे हैं कि दोनों ने मर्जी से संबंध बनाए थे।

पति के छोड़ने के बाद दर्ज कराई शिकायत-

FIR में वर्णित तथ्यों पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि केस का आरोपी और शिकायतकर्ता (महिला) विवाहित हैं। उनके बच्चे भी हैं। पुलिस महकमे से जुड़े दोनों लोगों का शुरुआती परिचय जल्द ही प्रेम संबंधों में बदल गया था। जनवरी 2020 से मई 2021 तक दोनों एकदूसरे के साथ विवाहेतर रिश्ते में शामिल थे।

रिश्ते का पता चला तो पति छोड़ गया-

बेंच ने कहा कि पीड़िता शादीशुदा है। आरोपी भी शादीशुदा है। शादीशुदा होते हुए वह उससे शादी नहीं कर सकता है। दोनों बच्चों के मां-बाप हैं। दोनों ने मर्जी से प्रेम और शारीरिक संबंध बनाए। जब तक रिश्ता छिपा रहा, ठीक रहा। अब जब रिश्ते का राज खुल गया और पति घर छोड़कर चला गया तो थाने पहुंच गई, जबकि पति को पता लगने तक संबंध सहमति से चल रहा था। दोनों ने कई बार शारीरिक संबंध बनाए। समस्या तब शुरू हुई, जब दोनों के विवाहेतर रिश्ते की भनक उनके पति-पत्नी को लग गई। फिर महिला ने पुलिस में आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, अन्यथा उनका रिश्ता सुचारू रूप से सहमति से चल रहा था।

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यह दीं दलीलें-

सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि आरोपी व महिला के बीच सहमति से रिश्ते बने थे। इसलिए रेप का केस नहीं बनता, जबकि शिकायतकर्ता के वकील ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को अपराध की गंभीरता को देखते हुए FIR रद्द करने के अधिकार का संयमित ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए और न्याय के उद्देश्य को सुरक्षित रखने के लिए FIR रद्द करने के अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने कहा 375 के तहत रेप केस नहीं बनता

बेंच ने साफ किया कि इस केस की FIR में उल्लेखित तथ्यों से IPC की धारा 375 के अर्थ में रेप और धोखाधड़ी के अपराध का खुलासा नहीं होता है। लिहाजा आरोपी के खिलाफ मुंबई सत्र न्यायालय में IPC की धारा 376, 376(2), 377 और 420 के तहत प्रलंबित केस रद्द किया जाता है। आरोपी ने FIR और हाईकोर्ट में पेंडिग केस को रद्द करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि महिला के आरोपों से रेप का मामला नहीं बनता है। महिला की शिकायत के मुताबिक, आरोपी ने उसे पत्नी को तलाक देकर शादी का वादा किया था। आरोपी ने उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाए थे।

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