allahabad high court654789

उच्च न्यायालय: धारा 506 IPC संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध है अतः कम्प्लेंट केस नहीं चलाया जा सकता-

Allahabad High Court इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में अपना निर्णय देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य में, धारा 506 के तहत अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है, इसलिए इसे कम्प्लेंट केस के रूप में नहीं चलाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने धारा 482 के तहत एक राकेश कुमार शुक्ला द्वारा दायर एक याचिका में फैसला सुनाया, जिसमें धारा 504 और 506 आईपीसी के तहत चार्जशीट को चुनौती दी गई थी।

वादकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि हालांकि मूल रूप से FIR आईपीसी की धारा 307, 504, 506 के तहत दर्ज की गई थी, लेकिन जांच के दौरान, धारा 307 आईपीसी के तहत अपराध करने का आरोप झूठा पाया गया और केवल धारा 504 और 506 के तहत मामला पाया गया।

क्यूँकि दोनों गैर-संज्ञेय अपराध हैं इसलिए, आवेदक के खिलाफ मामला केवल कम्प्लेंट केस के रूप में आगे चल सकता है।

याची के वकील ने अपने सबमिशन के समर्थन में सीआरपीसी की धारा 2 (डी) से जुड़े स्पष्टीकरण पर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है।

इसके अलावा डॉ राकेश कुमार शर्मा बनाम यूपी राज्य एक अन्य ने 2007 (9) एडीजे 478 में हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा रखा गया था, कोर्ट ने कहा था कि धारा 504 के तहत अपराध में केवल कम्प्लेंट केस हाई चल सकता है।

बेंच ने पाया कि वर्तमान मामला डॉ राकेश कुमार शर्मा (सुप्रा) मामले से अलग है, क्योंकि इस मामले में अतिरिक्त धारा 506 है। इसके अलावा, ओऊरत ने कहा कि धारा 506 को एक गैर–संज्ञेय अपराध के रूप में वर्णित किया गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिसूचना संख्या 777/VIII-9 4(2)-87, दिनांक 31 जुलाई 1989, यूपी गजट, अतिरिक्त भाग-4, खंड (खा) में प्रकाशित, दिनांक 2 अगस्त, 1989 द्वारा धारा 506 आईपीसी को संज्ञेय और गैर जमानती बना दिया गया है

ALSO READ -  बलात्कारी '4 साल की पीड़िता' को जिंदा छोड़ने के लिए "काफी दयालु" था, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने उम्रकैद की सजा को किया कम

उपरोक्त अधिसूचना आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 1932 (1932 का अधिनियम संख्या 23) की धारा 10 के तहत जारी की गई है और मेटा सेवक उपाध्याय बनाम यूपी राज्य के1995 सीजे (सभी) 1158 मामले में उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने भी इसे बरकरार रखा है। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा एरेस रोड्रिग्स बनाम विश्वजीत पी. राणे (2017) 11 एससीसी 62 के मामले में में भी इसे सही माना गया है।

उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने माना कि चूंकि आरोपी पर धारा 504 और 506 आईपीसी के तहत आरोप लगाया गया है और दोनों अपराधों के लिए संज्ञेय अपराधों के विचारण के लिए निर्धारित तरीके से मुकदमा चलाया जाना है।

Translate »
Scroll to Top