इलाहाबाद उच्च न्यायलय एक मामले की सुनवाई करते हुए अपने निर्णय में कहा है कि चेक बाउंस के मामले में ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा गया डिमांड नोटिस वैध है। कोर्ट ने कहा कि ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा गया नोटिस उसी तारीख को भेजा गया माना जाएगा, बशर्ते वह आईटी एक्ट की धारा 13 की आवश्यकताओं को पूरा करता हो। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने चेक बाउंस के मामले की कार्यवाही रद्द करने की मांग में दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि चेक बाउंस के मामलों में ईमेल या व्हाट्सएप Email और Whatsapp के जरिये भेजा गया नोटिस मान्य होगा, बशर्ते वह आईटी एक्ट की धारा 13 की बातों के अनुरूप हो। कहने का मतलब ये कि अगर आप किसी को अपने सेल फोन के माध्यम (ईमेल या व्हाट्सएप) के माध्यम से चेक बाउंस का डिमांड नोटिस भेजते हैं तो ये पूरी तरह वैलिड होगा। कोर्ट ने ये बात नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून और आईटी एक्ट के प्रावधानों की रौशनी में कही है।
कोर्ट की ये टिप्पणी राजेंद्र यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में सामने आई है। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के जज अरुण कुमार सिंह देशवाल ने इस मामले को सुना। जज अरुण कुमार सिंह देशवाल ने बताया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून की धारा 138 लिखित तौर पर नोटिस देने की बात तो कहती है लेकिन वह भेजने के तरीके को लेकर कुछ नहीं कहती। लिहाजा, हाईकोर्ट ने चेक बाउंस के मामलों में ईमेल या व्हाट्सएप Email और Whatsapp के जरिये भेजे गए नोटिस को कुछ भी गलत नहीं माना।
आईटी और एविडेंस कानून का दिया हवाला-
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस नतीजे तक पहुंचने के लिए न केवल नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून बल्कि आईटी कानून के प्रावधानों की भी पड़ताल की। आईटी कानून में कहा गया है कि जानकारी लिखित में हो या फिर टाइप कर के लिखा गया, दोनों सूरत में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिये भेजी गई जानकारी को सही माना जाएगा।
अदालत ने इस बात की पुष्टि के लिए आईटी कानून के सेक्शन 4 और 13 का जिक्र भी किया। कोर्ट ने इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 65 बी का भी हवाला दिया जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड स्वीकार करने की बात कहती है।
हाईकोर्ट ने और क्या कहा?
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून NI Act से जुड़े मामलों की सुनवाई को लेकर कोर्ट ने कुछ और डायरेक्शन उत्तर प्रदेश के मैजिस्ट्रेट्स के लिए जारी किए हैं जिनमें सबसे अहम ये था कि अगर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून के तहत कोई शिकायत दर्ज की जाति है तो संबंधित मजिस्ट्रेट को या फिर कोर्ट को रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिये भेजी गई शिकायत का पूरा ट्रैक-रिकॉर्ड मांगना और रखना होगा ताकि किसी तरह की बेईमानी की कोई गुंजाइश न रहे।
इस मामले में राजेंद्र यादव की ओर से सुनील कुमार, चंदन सिंह और नरेंद्र सिंह जैसे वकीलों ने पक्ष रखा जबकि उत्तर प्रदेश राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट पद्माकर राय ने पैरवी की।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि यदि परिवाद में नोटिस के तामील की कोई तारीख का उल्लेख नहीं किया गया है, तो अदालत साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 और सामान्य खंड की धारा 27 के तहत मान सकती है।