हाईकोर्ट का डीजीपी से प्रश्न, यदि पुलिस अभियुक्त के पूर्ण आपराधिक रिकॉर्ड कोर्ट को नहीं दे पाना रही है, तो उसे दुराचार या न्याय में हस्तक्षेप में से क्या कहेंगे-

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सुनवाई में एसपी द्वारा कोर्ट को सूचित किया गया कि मामले में संबंधित एसएचओ के साथ-साथ जांच अधिकारी को कदाचार का दोषी पाया गया और उन पर क्रमशः 2,000 और 5,000, रुपये का जुर्माना लगाया गया।

ग्वालियर बेंच मध्य प्रदेश हाईकोर्ट Gwalior Bench of Madhya Pradesh high Court ने हाल ही में मध्य प्रदेश राज्य के पुलिस महानिदेशक DGP को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है, जिसमें यह बताने का निर्देश दिया है कि क्या किसी आवेदक/अभियुक्त के आपराधिक इतिहास के बारे में अदालत को जानकारी न देना एक मामूली कदाचार है या आपराधिक न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप करने के बराबर है। हलफनामा Affidavit सुनवाई की अगली तारीख से पहले दायर किया जाना है।

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया ने कहा कि अदालत अक्सर यह देख रही है कि पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी परिपत्र के बावजूद पुलिस अधिकारी पूरी आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं भेज रहे हैं।

कोर्ट ने कहा-

प्रस्तुत मामले में, पुलिस अधिकारियों ने आवेदक के आपराधिक इतिहास को नहीं भेजा, इसलिए, यह स्पष्ट है कि यह आवेदक को यह कहकर जमानत प्राप्त करने में सुविधा प्रदान करेगा कि उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। क्या पुलिस अधिकारियों के इस आचरण को एक छोटी सी लापरवाही कहा जा सकता है या यह आपराधिक न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप है?

तदुपरान्त, अदालत ने पुलिस अधीक्षक, जिला भिंड से जवाब मांगा कि संबंधित एसएचओ SHO द्वारा आवेदक के आपराधिक इतिहास के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी को क्यों रोक दिया गया। बाद में हुई सुनवाई में एसपी SP द्वारा कोर्ट को सूचित किया गया कि मामले में संबंधित एसएचओ SHO के साथ-साथ जांच अधिकारी को कदाचार का दोषी पाया गया और उन पर क्रमशः 2,000 और 5,000, रुपये का जुर्माना लगाया गया।

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अदालत ने कहा कि चूंकि समस्या विभिन्न पुलिस थानों से उत्पन्न हो रही है, इसलिए डीजीपी DGP को मौजूदा स्थिति के बारे में अपना जवाब दाखिल करना चाहिए-

चूंकि यह स्थिति विभिन्न पुलिस थानों में मौजूद है, इसलिए, मध्य प्रदेश राज्य के पुलिस महानिदेशक को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाता है कि क्या आवेदक के आपराधिक इतिहास की जानकारी न देना एक छोटा कदाचार है या यह आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली में हस्तक्षेप करने के समान है। एक सप्ताह के भीतर शपथ पत्र दाखिल किया जाए।

मामले की अगली सुनवाई 08.07.2022 को होगी।

केस टाइटल – कुलदीप दोहरे बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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