हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ओबेरॉय ग्रुप को पांच सितारा होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल वापस प्रदेश सरकार को सौंपने का फैसला सुनाया है। करीब 22 साल से केस कोर्ट में लंबित है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट Himanchal Pradesh High Court ने ओबरॉय ग्रुप Oberoi Group को पांच सितारा वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल राज्य सरकार को सौंपने के आदेश दिए हैं। शुक्रवार को मामले की हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने होटल को कब्जा दो माह में सरकार को देने के लिए कहा। 15 मार्च, 2024 को मामले की पूरी रिपोर्ट भी मांगी है। इसके अलावा कोर्ट ने वित्तीय मामले निपटाने के लिए दोनों पक्षों को एक नामी चार्टेड अकाउंटेंट (CA) नियुक्त करने के आदेश भी दिए हैं। सरकार के आवेदन का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ओबरॉय ग्रुप आर्बिट्रेशन अवॉर्ड की अनुपालना तीन माह की तय समय सीमा के भीतर करने में असफल रहा। ऐसे में प्रदेश सरकार होटल का कब्जा और प्रबंधन अपने हाथों में लेने के लिए पात्र हो गई है। न्यायाधीश सत्येन वैद्य की अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई।
प्रस्तुत मामले के अनुसार वर्ष 1993 में वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल में आग लग गई थी। इसे फिर से पांच सितारा होटल के रूप में विकसित करने के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए गए थे। निविदा के तहत ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने भी भाग लिया और राज्य सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स के साथ साझेदारी में कार्य करने का फैसला लिया था। संयुक्त उपक्रम के तहत ज्वाइंट कंपनी मशोबरा रिजॉर्ट लिमिटेड के नाम से बनाई गई। करार के अनुसार कंपनी को चार साल के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था।
अदालत ने कहा की ऐसा न करने पर कंपनी को दो करोड़ रुपये जुर्माना प्रतिवर्ष सरकार को अदा करना था। वर्ष 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम जमीन ट्रांसफर की। छह वर्ष बीत जाने के बाद भी कंपनी पूरी तरह होटल को उपयोग लायक नहीं बना पाई। साल 2002 में सरकार ने कंपनी के साथ किया करार रद्द कर दिया। सरकार के इस निर्णय को कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष चुनौती दी गई। बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था। सरकार ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने मामले को निपटारे के लिए आर्बिट्रेटर के पास भेजा। आर्बिट्रेटर ने वर्ष 2005 में कंपनी के साथ करार रद्द किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराया था और सरकार को संपत्ति वापस लेने का हकदार ठहराया। इसके बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने बेंच के समक्ष चुनौती दी थी। बेंच ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा कि मध्यस्थ की ओर से दिया गया फैसला सही और तर्कसंगत है। कंपनी के पास यह अधिकार बिल्कुल नहीं कि करार में जो फायदे की शर्तें हैं, उन्हें मंजूर करे और जिससे नुकसान हो रहा हो, उसे नजरअंदाज करें।
+ There are no comments
Add yours