सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का ऐतिहासिक कदम, तीन दशक बाद पहली बार ‘न्यायिक पदों’ के लिए उम्मीदवारों का साक्षात्कार दिल्ली के बाहर आयोजित

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का ऐतिहासिक कदम, तीन दशक बाद पहली बार 'न्यायिक पदों' के लिए उम्मीदवारों का साक्षात्कार दिल्ली के बाहर आयोजित

काफी दवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, लगभग तीन दशकों में पहली बार, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायिक पदों के लिए उम्मीदवारों का साक्षात्कार लेने के लिए दिल्ली से बाहर कदम रखा।

इस कदम से ऐसा लगता है कि विगत दिनों जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पर अंदर से पूर्व न्यायाधीशों द्वारा और केंद्र सरकार के दवरा (NJC) विरोध किया जाता है उसी को काउंटर करने के लिए ये पहल किया गया है। अब देखना है कि ये पहल कितना उपयोगी सिद्ध होता है।

अभूतपूर्व बैठकें विशाखापत्तनम में हुईं, जहाँ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित उम्मीदवारों का मूल्यांकन किया गया।

यह पहल पारंपरिक प्रथाओं से एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट, 1990 के दशक में स्थापित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए, कार्यकारी प्रभाव से न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के उद्देश्य से, उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्भर था। इनमें बायोडेटा, खुफिया रिपोर्ट और राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों से इनपुट के आधार पर मूल्यांकन शामिल थे।

भारत के मुख्य न्यायाधीश CJI संजीव खन्ना के साथ-साथ न्यायमूर्ति बीआर गवई और सूर्यकांत द्वारा सत्रों का नेतृत्व करने के साथ नवीनतम दृष्टिकोण ने अधिक व्यक्तिगत मोड़ ले लिया।

20 से अधिक न्यायाधीश, अपने परिवारों के साथ, इन मूल्यांकनों के लिए आंध्र प्रदेश के एक व्यस्त शहर विशाखापत्तनम की यात्रा की। विशाखापत्तनम में उम्मीदवारों से मिलने के निर्णय को उम्मीदवारों के समय और खर्च को बचाने के लिए एक व्यावहारिक कदम के रूप में देखा गया।

22 दिसंबर से शुरू हुए व्यक्तिगत साक्षात्कार उस होटल में आयोजित किए गए, जहाँ सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ठहरे हुए थे। इस नई पद्धति का उद्देश्य उम्मीदवारों की क्षमताओं, व्यक्तित्व और संवैधानिक न्यायाधीशों की भूमिका के लिए उपयुक्तता के बारे में गहन जानकारी प्राप्त करना है।

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उम्मीदवारों से सीधे जुड़ना सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के लिए एक परिवर्तनकारी कदम है, जो संभावित न्यायाधीशों के व्यवहार और बेंच के लिए उपयुक्तता के बारे में अधिक सूक्ष्म समझ प्रदान करता है। यह पहल न केवल एक तार्किक सुविधा है, बल्कि न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया की एक रणनीतिक वृद्धि भी है, जो एक अधिक मजबूत और पारदर्शी चयन तंत्र सुनिश्चित करती है।

इस कदम से ऐसा लगता है कि विगत दिनों जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पर अंदर से पूर्व न्यायाधीशों द्वारा और केंद्र सरकार के दवरा विरोध किया जाता है उसी को काउंटर करने के लिए ये पहल किया गया है। अब देखना है कि ये पहल कितना उपयोगी सिद्ध होता है।

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