सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि दृष्टिहीन व्यक्तियों को भी न्यायिक सेवाओं में नियुक्त किए जाने का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया, जिससे दृष्टिहीन व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में शामिल होने से रोका जा रहा था।
न्यायिक सेवाओं में दृष्टिहीनों की भागीदारी पर मुहर
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इस महत्वपूर्ण निर्णय को सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी नागरिक को केवल उसकी शारीरिक अक्षमता के आधार पर न्यायिक सेवाओं में भाग लेने से वंचित नहीं किया जा सकता।
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों को किया रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम को खारिज कर दिया, जिसमें दृष्टिहीन उम्मीदवारों को न्यायाधीश बनने की प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था। अदालत ने कहा कि यह नियम संविधान में दिए गए समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करता है और इसे जारी नहीं रखा जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला तब सामने आया जब एक महिला ने अदालत को पत्र लिखा, जिसमें उसने बताया कि उसका दृष्टिहीन बेटा न्यायिक सेवा में शामिल होना चाहता था, लेकिन मध्य प्रदेश के नियमों के कारण वह ऐसा नहीं कर सकता था। इस पत्र को सुप्रीम कोर्ट ने एक सुओ मोटो (स्वतः संज्ञान) याचिका के रूप में स्वीकार किया और इस पर सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष
अदालत ने कहा कि दृष्टिहीन लोगों को न्यायिक सेवा में नियुक्त किए जाने से न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता और समावेशन को बढ़ावा मिलेगा। इस फैसले के साथ, देश में अब दृष्टिहीन व्यक्तियों को भी न्यायाधीश बनने का अवसर मिलेगा, जिससे न्याय प्रणाली में एक नया आयाम जोड़ा गया है।
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