इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ही घटना में दूसरी एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। कहा है कि एक ही घटना में दो एफआईआर नहीं दर्ज की जा सकती है। लेकिन उसी के दो भिन्न कथन, तथ्य व सबूत के खुलासों के साथ शिकायत की गई हो तो दूसरी एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की पीठ ने निर्मल सिंह कहलों बनाम पंजाब राज्य 2008 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की। निर्मल सिंह मामले (सुप्रा) में राम लाल नारंग बनाम राज्य (दिल्ली प्रशासन) 1979 में पहले के फैसले का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दूसरी FIR तब भी कायम रहेगी, जब किसी बड़ी साजिश के बारे में तथ्यात्मक आधार पर नई खोज की गई हो।
कोर्ट ने सीजेएम मथुरा को याची की धारा 156(3) की अर्जी पर नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।
मथुरा निवासी याची संगीता मिश्रा के पति की मृत्यु हो गई थी। पुलिस ने याची को ही आरोपी बनाते हुए चार्जशीट दाखिल कर जेल भेज दिया। याची जेल से बाहर आई तो उसने धारा 156(3) के तहत कोर्ट में हत्या की उसी घटना की एफआईआर दर्ज करने के लिए अर्जी दी। मजिस्ट्रेट ने अर्जी को निरस्त कर दिया। इसके खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी भी निरस्त कर दी गई। याची ने दोनों आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याची के वकील ने दलील दी कि याची व उसके पति की जानकारी के बगैर याची के ससुर ने अपनी संपत्ति का बेटों में बंटवारा कर दिया। इस पर भाइयों में विवाद हुआ। तीन मई 2020 को पति के भाई आए और उन्हें अपने साथ ले गए। इसके बाद याची के पति लौटे नहीं। याची ने लापता होने की थाने में शिकायत भी की। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। बाद में पुलिस ने याची को ही पति की हत्या का आरोपी बनाकर एफआईआर दर्ज कर दी।
कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद कहा एक ही घटना की दो एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। लेकिन, उसी घटना के दो भिन्न कथन, तथ्य व सबूत के खुलासों के साथ शिकायत की गई हो तो एक ही घटना की दूसरी एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
इसके मद्देनजर न्यायालय ने सीजेएम की अदालत का आदेश खारिज किया और मामले को संबंधित न्यायालय को वापस भेज दिया, जिससे आवेदक द्वारा धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन पर कानून की स्थापित स्थिति के मद्देनजर नए सिरे से निर्णय लिया जा सके।
वाद शीर्षक – संगीता मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 6 अन्य
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