“Life Imprisonment” उम्रकैद या आजीवन कारावास : जाने विस्तार से-

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“Imprisonment for life” ना 20 साल ना 14 साल और ना ही दिन और रात मिलाकर 14 साल की जगह 7 साल। क्योंकि जेल में भी एक दिन का मतलब 24 घंटे से ही होता है।

Life Imprisonment” उम्रकैद, आजीवन कारावास को लेकर लोगों में बड़ा कन्फ्यूज़न है।

मसलन आजीवन कारावास की समय सीमा को लेकर। कभी आप सुनेंगे कि आजीवन कारावास 14 साल का होता है। तो कोई कहता मिल जाएगा कि आजीवन कारावास 20 सालों का होता है। ऐसे में बार-बार मन मे ये सवाल उठता है कि आखिर आजीवन कारावास कितने सालों का होता है, आजीवन कारावस की सजा सुनाए गए कैदी को कितने साल जेल में काटने पड़ते हैं ?

यकीन मानिए कि इस लेख को पढ़ने के बाद उम्रकैद को लेकर आपके मन में चल रहे सारे कन्फ्यूज़न दूर हो जाएंगे।

शुरुआत Indian Penal Code यानी भारतीय दंड सहिंता से

Indian Penal Code Sec-53 क्या कहती है-

Section 53 of the IPC in Chapter III deals with the kinds of punishments which can be inflicted on the offenders.

However, when section 53 of IPC was amended in 1955; they replaced “Transportation for life” with “Imprisonment for life”.

IPC की धारा 53 में दंड के प्रावधानों यानी टाइप्स ऑफ पनिशमेंट का जिक्र है। जैसे मृत्यु दंड,सादा कारावास, सश्रम कारावास, जुर्माना और इन्हीं में से एक है आजीवन कारावास ।

क्या आजीवन कारावास 14 सालों का होता है ?

आजीवन कारावास जिसे उर्दू में उम्रकैद भी कहते हैं इसे लेकर अक्सर सुनने को मिलता है कि ये 14 सालों का होता है। आखिर ये 14 सालों का फंडा आया कहां से ? कहां से आया ये 14 सालों का कॉन्सेप्ट ? तो एक बात आपको साफ कर दें कि आजीवन कारावासा का मतलब शेष जीवन यानी अपराधी की बची हुई बाकी जिंदगी के लिए जेल से है (Imprisonment till Rest of the Life).
ऐसे में फिर वही सवाल उठता है कि अगर आजीवन कारावास का मतलब पूरी जिंदगी जेल में गुजारने से है तो ये 14 साल का कॉन्सेप्ट कहां से आ गया ?

सर्वोच्च न्यायलय ने Bhagirath & Ors v. Delhi Administration केस में आजीवन कारावास को दोषी के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास के रूप में परिभाषित किया। यदि किसी व्यक्ति को आजीवन कारावास दिया जाता है; वह कम से कम 14 साल तक जेल में रहेगा और अधिकतम जीवन भर रहेगा।

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आजीवन कारावास और 14 साल का कॉन्सेप्ट-

दरअसल भारती दंड संहिता की धारा 55 के तहत समुचित सरकार (केंद्र का मामला हो तो केंद्र सरकार राज्य का मामला हो तो संबंधित राज्य सरकार) संबंधित अपराधी की मर्जी के बिना उम्रकैद की सजा को कम कर सकती है या फिर उस अपराधी को रिहा कर सकती है।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने Naib Singh v. State of Punjab & Ors.; के मामले में आजीवन कारावास की अवधि और आईपीसी की धारा 55 के भ्रम को दूर किया। अदालत ने कहा कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाला 14 साल जेल की सजा काटने के बाद अपनी रिहाई का दावा नहीं कर सकता। आजीवन कारावास जेल की मृत्यु तक जारी रहता है। इसका एकमात्र अपवाद कम्यूटेशन और रिमिशन है।

IPC की ही तरह Criminal Procedure Code (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 432 के तहत सजा में छूट और धारा 433 के तहत सजा में बदलाव कर सकती है।मतलब सरकार को मुजरिम के माफीनामे का अधिकार है। लेकिन यहां भी दो सवाल कि क्या सरकार किसी मुजरिम को 14 साल से पहले माफीनामा देकर रिहा कर सकती है ? अगर हां तो किस स्थिति में और अगर 14 साल की सजा काट लेने पर रिहा करती है तो वो किस स्थिति में ?

1978 में मेरू राम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में न्यायालय ने साफ कर दिया कि आजीवन कारावास का मतलब है बची हुई पूरी जिंदगी जेल में गुजारना। लेकिन समुचित सरकार अगर चाहें तो कैदी को रिहा कर सकती है।

14 साल की सजा काटने के बाद कैदी को रिहा किया जा सकता है ?

दरअसल Criminal Procedure Code की धारा 432 और 433 के तहत मिले अधिकारों के तहत बड़ी संख्या में कैदियों की रिहाई होने लगी कई मामलों में इसका दुरुपयोग भी देखने को मिला। जिसके बाद Criminal Procedure Code में संशोधन कर एक नई धारा 433(a) जोड़ी गई। इसके तहत ये सुनिश्चित किया गया कि किसी अपराधी को यदि किसी ऐसे मामले में सजा सुनाई गई है जिसमें मौत की सजा भी एक विकल्प था,लेकिन फिर भी उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। ऐसे मामले में संबंधित अपराधी की सजा को सरकार माफ तो कर सकती है।लेकिन किसी भी सूरत में उस अपराधी को 14 साल की सजा काट लेने से पहले रिहा नहीं किया जा सकता है। शायद यही वजह है कि आजीवन कारावास को लेकर अक्सर ये भ्रम रहता है कि शायद ये 14 सालों का होता है।

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क्या 14 साल से पहले कैदी को छोड़ा जा सकता है ?

अब सवाल उठता है कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे किसी कैदी को 14 साल से पहले छोड़ा जा सकता है? तो इसका जवाब है हां। लेकिन ये तभी संभव है जब उस अपराधी को किसी ऐसे जुर्म में सजा सुनाई गई हो जिसके लिए मृत्यु दंड का विकल्प ना हो। मतलब उस अपराध के लिए मृत्युदंड का प्रावधान ना रहा हो और उसे जनरली उम्रकैद की सजा सुनाई गई हो।

किन शर्तों पर समय से पहले रिहाई ?

वैसे तो उम्रकैद की सजा का मतलब जिंदगी भर के कैद से  है।लेकिन अपराधी के अच्छे आचरण के आधार पर उसे समय से पहले रिहा किया जा सकता है। इसके तहत जेल प्रशासन संबंधित कैदी के मामले को सेंटेंस रिव्यू कमेटी के पास भेजता है।कमेटी को यदि लगता है कि संबंधित कैदी की सजा को माफ किया जा सकता है तो वो अपनी अनुशंसा गवर्नर के पास भेजती है जिसके बाद कैदी की रिहाई को अमल में लाया जाता है।

यहां ध्यान रखने वाली बात है चाहें 14 साल से पहले या 14 साल पूरे होने के बाद रिहाई का मामला हो , यहां भी कॉन्सेप्ट वही वाला लागू होगा जिसके तहत 14 साल से पहले  रिहाई संभव नहीं अगर संबंधित मुजरिम को ऐसे जुर्म के लिए सजा मिली जिसमें फांसी की सजा का भी विकल्प था।वहीं 14 साल से पहले रिहाई संभव है अगर अपराधी को ऐसे अपराध के लिए सजा मिली है जिसके लिए फांसी की सजा का ऑप्शन नहीं था।इसलिए आप 14 साल के पहले और 14 साल के बाद रिहाई वाले कॉन्सेप्ट को लेकर बिल्कुल भी कन्फ्यूज़ ना हों ।

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उम्रकैद और 20 साल की सजा का क्या कनेक्शन ?

इतना तो तय है कि उम्रकैद का मतलब 14 साल नहीं बल्कि उम्र भर सलाखों के पीछे गुजारने से है।लेकिन कई बार सुनने में आता है या तथाकथित विद्वान ये कहते सुने जाएंगे कि उम्रकैद का मतलब 20 साल की सजा से है।लेकिन सच ये है कि ये 20 साल वाली बात सिर्फ सुनी-सुनाई बातें हैं।लेकिन सवाल वही कि आखिर ये 20 साल वाला कॉन्सेप्ट भी कहां से आ गया? तो इसका जवाब Indian Penal code की धारा 57 में है।

दरअसल कई बार स्थिति ऐसी होती है कि सजा की समयसीमा को बढ़ाना पड़ता है, जैसे यदि अपराधी को सजा और जुर्माना दोनों सुनाया गया है। लेकिन यदि अपराधी जुर्माना नहीं भरता तो उस स्थिति में उसकी सजा बढ़ा दी जाती है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि किसी कैदी की सजा की अवधि बढ़ानी हो तो उसका पैमाना क्या हो उसका आधार क्या है। तो काूनन कहता है कि ऐसा स्थिति में अपराधी को सुनाई गई सजा का एक चौथाई यानी 1/4 हिस्सा बढ़ाया जा सकता है। मतलब एक मनुष्य की औसत आयु को 80 साल मानते हुए उसकी जिंदगी के 1/4 हिस्से को 20 साल माना गया और सिर्फ गणना के लिए ये समयसीमा निर्धारित हुई। यही वजह है कि उम्रकैद की सजा को कई लोग 20 साल मान बैठते हैं। लेकिन आपको एक बार फिर साफ कर दें कि उम्रकैद का मतलब उम्र भर के लिए ही जेल से है। ना 20 साल ना 14 साल और ना ही दिन और रात मिलाकर 14 साल की जगह 7 साल। क्योंकि जेल में भी एक दिन का मतलब 24 घंटे से ही होता है।

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