हत्या के केस में – सिर की चोट महत्वपूर्ण, सिर्फ फ्रैक्चर नहीं होने से मामला SEC 302 IPC से बाहर नहीं किया सकता: सुप्रीम कोर्ट

Estimated read time 1 min read

सर्वोच्च न्यायलय SUPREME COURT ने एक मामले में हत्या के आरोपी को दोषी ठहराते हुए कहा कि केवल यह तथ्य कि कोई फ्रैक्चर नहीं देखा और/ या पाया नहीं गया था, मामले को इंडियन पीनल कोड IPC की धारा 302 से बाहर नहीं कर सकता है, जबकि मौत सिर की चोट के कारण हुई थी।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि इंडियन पीनल कोड IPC की धारा 302 को आकर्षित करने के लिए सिर पर चोट को शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से पर चोट देना कहा जा सकता है।

प्रस्तुत मामले में निचली अदालत ने आरोपियों को इंडियन पीनल कोड IPC की धारा 302 के तहत दोषी करार दिया था। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आंशिक रूप से अपील की अनुमति देते हुए दोषसिद्धि को धारा 326 आईपीसी (खतरनाक हथियारों या साधनों से गंभीर चोट) में संशोधित किया।

हाईकोर्ट ने पाया कि मृतक की मृत्यु छह दिनों के बाद हुई थी और मृतक के सिर पर कोई फ्रैक्चर नहीं पाया गया था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में, राज्य ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्धि को धारा 302 आईपीसी IPC से धारा 326 आईपीसी IPC में परिवर्तित करते समय दिया गया उक्त तर्क विकृत है।

सुप्रीम कोर्ट बेंच SUPREME COURT BENCH ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उल्लिखित चोटों पर विचार नहीं किया, जिसमें उल्लेख किया गया था कि सिर की चोट घातक थी और उक्त चोटों के कारण मृतक की मृत्यु हो गई। अदालत ने कहा कि केवल इसलिए कि छह दिनों के बाद मृतक की मृत्यु हो गई, धारा 302 इंडियन पीनल कोड के तहत अपराध के लिए दोषसिद्धि को रद्द करने और इसे धारा 326 इंडियन पीनल कोड IPC में बदलने का आधार नहीं हो सकता है।

ALSO READ -  एक पुरुष को रेप का दोषी इसलिए नहीं ठहराया जा सकता, क्योकि रिश्ता विवाह तक नहीं पहुंच सका: बॉम्बे हाईकोर्ट

कोर्ट ने कहा-

“जैसा कि यहां देखा गया है कि सिर पर चोट लगने से शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से पर चोट लग सकती है और इसलिए धारा 302 आईपीसी का एक स्पष्ट मामला स्थापित और साबित हो गया है। अत: विद्वान ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को क्रमश: धारा 302 आईपीसी और धारा 302/34 आईपीसी के तहत अपराध के लिए सही दोषी ठहराया।”

इस प्रकार देखते हुए, बेंच ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को बहाल कर दिया जिसमें आरोपी को आईपीसी IPC की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था।

पीठ ने कहा कि हम इस बात की सराहना करने में विफल हैं कि मामला आईपीसी IPC की धारा 326 के तहत कैसे आएगा, जब मृतक की वास्तव में गंभीर चोट के कारण मृत्यु हुई थी और शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से पर चोटें आई थीं।

केस टाइटल – यूपी राज्य बनाम जय दत्त
केस नंबर – सीआरए 37 ऑफ 2022

You May Also Like