त्रिपुरा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि त्रिपुरा में कथित तौर पर अक्टूबर में हुए घृणा अपराधों में हस्तक्षेप की मांग करने वाली शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका ‘चयनात्मक’ है क्योंकि याचिकाकर्ता तब चुप था जब पिछले वर्ष मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा’ हुई थी।
हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा है कि कुछ अखबारों में छपने वाले प्लांटेड और पूर्व-नियोजित लेख, बाद में इस तरह की जनहित याचिका का आधार बन जाते हैं या तथाकथित जन-उत्साही व्यक्तियों द्वारा स्वयं-सेवा रिपोर्ट तैयार करने के लिए अपनी टीम भेजते हैं। इस तरह की रिपोर्ट इस प्रकार बनाए जाते हैं जो बाद में कार्रवाई का कारण बनते हैं और उनकी सामग्री के आधार पर याचिकाएं दायर की जाती हैं।
त्रिपुरा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि त्रिपुरा में कथित तौर पर अक्टूबर में हुए घृणा अपराधों में हस्तक्षेप की मांग करने वाली शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका ‘चयनात्मक’ है क्योंकि याचिकाकर्ता तब चुप था जब पिछले वर्ष मई में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा’ हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में त्रिपुरा सरकार ने कहा कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों से पहले और बाद में हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला ने पश्चिम बंगाल को हिलाकर रख दिया था, जो त्रिपुरा हिंसा की तुलना में ‘परिमाण में बड़ा’ था लेकिन याचिकाकर्ता का जन भावना सिर्फ त्रिपुरा में जागी।
राज्य सरकार ने हलफनामे में कहा है कि कोई भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह, जो पेशेवर रूप से सार्वजनिक उत्साही व्यक्तियों(पब्लिक स्पिरिटेड पर्सन्स) के रूप में काम कर रहा है, कुछ स्पष्ट लेकिन अघोषित मकसद को हासिल करने के लिए शीर्ष अदालत का रुख नहीं कर सकता।
राज्य सरकार ने यह हलफनामा एहतेशम हाशमी की उस याचिका के जवाब में दायर किया गया है जिसमें याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि उन्होंने दिल्ली के अन्य वकीलों के साथ राज्य के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का व्यक्तिगत रूप से दौरा किया था और एक तथ्य-खोज रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट में 12 मस्जिदों को नुकसान, मुस्लिम व्यवसायियों के स्वामित्व वाली नौ दुकानें क्षतिग्रस्त होने और मुसलमानों के स्वामित्व वाले तीन घरों में तोड़फोड़ आदि की बात कही गई थी।
याचिका में दावा किया गया था कि याचिकाकर्ता उन पोडित परिवारों और व्यक्तियों से मुलाकात करने के बाद उस निष्कर्ष पर पहुंचा था। हाशमी ने अपनी याचिका में कहा था कि पुलिस ने उपद्रवियों और दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय इसके खिलाफ बोलने वालों के खिलाफ कार्रवाई की। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि दिल्ली के दो वकीलों, जो तथ्य खोजने वाली टीम का हिस्सा थे, को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-41ए के तहत नोटिस भेजा गया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके सोशल मीडिया पोस्ट समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा यह भी पीठ के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया गया था कि पुलिस ने हिंसा पर रिपोर्टिंग और लेख लिखने वाले पत्रकारों सहित 102 लोगों को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपित किया।
राज्य सरकार ने हाशमी की याचिका में लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि राज्य के खिलाफ आरोपों की शुरुआत टैब्लॉयड(अखबारों) में लगाए गए प्लांटेड और पूर्व नियोजित लेखों से हुई थी।
हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा है कि कुछ अखबारों में छपने वाले प्लांटेड और पूर्व-नियोजित लेख, बाद में इस तरह की जनहित याचिका का आधार बन जाते हैं या तथाकथित जन-उत्साही व्यक्तियों द्वारा स्वयं-सेवा रिपोर्ट तैयार करने के लिए अपनी टीम भेजते हैं। इस तरह की रिपोर्ट इस प्रकार बनाए जाते हैं जो बाद में कार्रवाई का कारण बनते हैं और उनकी सामग्री के आधार पर याचिकाएं दायर की जाती हैं।
राज्य ने अपने हलफनामे में यह भी आरोप लगाया कि गलत तथ्यों पर आधारित यह तथ्य-खोज रिपोर्ट विशेष रूप से समुदायों और राज्य के बीच असंतोष पैदा करने के उद्देश्य से थी।