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संसद में राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा, न्यायिक स्वतंत्रता को विकृत कर रहा कॉलेजियम सिस्टम-

संसद में सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा, “1950-1970 तक के भारत के 47 मुख्य न्यायाधीशों में से अब तक कम से कम 14 ब्राह्मण रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय की अधिकतम शक्ति 14 न्यायाधीशों की थी और उनमें से 11 ब्राह्मण थे, क्या यह सम्मानित सदन हैरान होगा, ध्यान दें कि 1980 तक देश के सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी या एससी का कोई न्यायाधीश नहीं था?”

राज्यसभा में अपने पहले भाषण के दौरान केरल से सांसद जॉन ब्रिटास ने भारतीय न्यायपालिका में विविधता की कमी के बारे में बात की और न्यायिक नियुक्तियों की प्रणाली की आलोचना की।

संसद के बीते शीतकालीन सत्र में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्ते) संशोधन विधेयक 2021 (The High Court and Supreme Court Judges Amendment Bill 2021) को लोकसभा में पारित कर दिया गया था. राज्यसभा में इस पर चर्चा के दौरान केरल के सांसद जॉन ब्रिटस ने न्यायपालिका यानी इंडियन ज्यूडिशरी की ‘चार खामियों’ पर से पर्दा हटाया.

जॉन ब्रिटस ने इंडियन ज्यूडिशरी से जुड़ी कुछ ऐसे तार छेड़ दिए, जिन पर लंबे समय से सवाल उठाए जा रहे हैं. खैर, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटस के ऐसा करने पर कई लोगों की त्योरियां चढ़ गईं. उन्होंने इंडियन ज्यूडिशरी के छुपे हुए पहलुओं को राज्यसभा में रखा. जॉन ब्रिटस ने इंडियन ज्यूडिशरी की ‘चार खामियों’ पर सवाल खड़े किए.

आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा…

जजों की नियुक्ति पर सवाल

राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटस ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संशोधन विधेयक 2021 पर चर्चा करते हुए कहा कि इंडियन ज्यूडिशरी में एक गंभीर खामी है. हम कुछ मामलों पर निर्णय लेते हैं, लेकिन न्यायाधीशों यानी जस्टिस की नियुक्ति में हमारी कोई भूमिका नहीं है? क्या यह दुनिया में कहीं मौजूद है? बिल्कुल नहीं! न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति दुनियाभर में अनसुना है. लेकिन, भारत में ऐसा होता है. एक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की मांग की गई है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, बार और जनता का प्रतिनिधित्व करे. लोगों को बताएं कि हमारे न्यायाधीश कौन होंगे और उनकी क्षमता, योग्यता क्या है. क्या देश में रहस्य, गोपनीयता और अंधेरे में डूबी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए? जॉन ब्रिटस ने कहा कि मुझे डर है कि हम एक कुलीनतंत्र बना रहे हैं. हमारे पास जजों के परिवार से आने वाले कई न्यायाधीश हैं. ये तथ्य सही है कि न्यायाधीशों के परिवारों से आने वाले जज ईमानदार होते हैं. लेकिन, ये लोकतंत्र में ये एक अपवाद होना चाहिए. नाकि ‘पत्थर की लकीर.’

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इंडियन ज्यूडिशरी में बसा वंशवाद

जॉन ब्रिटस ने एक न्यायाधीश का प्रोफाइल पढ़कर सुनाते हुए कहा कि हाईकोर्ट की बेवसाइट पर एक जस्टिस की प्रोफाइल में उनकी जन्म की तारीख लिखी थी. प्रोफाइल में बताया गया था कि वे इंडियन ज्यूडिशरी से जुड़े परिवार से आते हैं. उनके नाना भारत के मुख्य न्यायाधीश थे. उनके बाबा एक पूर्व कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश थे. उनके एक चाचा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश थे. उनके मामा सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश हैं. जॉन ब्रिटस ने कहा कि यह एक लंबी लिस्ट की तरह है. हम सब वंशवाद की बात करते हैं. कांग्रेस में वंशवाद की बात करते हुए भाजपा के सदस्य बहुत गंभीर रहे हैं. कम से कम उन्होंने (कांग्रेस नेताओं) लोगों का विश्वास जीतने की परीक्षा तो पास कर ली है. यह एक वंशवाद का साफ मामला है. हम इस पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?

हाई कोर्ट और सुप्रीम के न्यायाधीशों (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 पर अपने भाषण के दौरान माकपा सांसद जॉन ब्रिटास ने भारतीय न्यायिक प्रणाली में असमान रूप से उच्च ब्राह्मणवादी प्रतिनिधित्व के बारे में बात की. ब्रिटास ने कहा कि भारत के 47 मुख्य न्यायाधीशों में से 14 ब्राह्मण थे.

कॉलेजियम सिस्टम से खत्म हुई न्यायपालिका की स्वतंत्रता

ब्रिटास ने इस बारे में विस्तार से बात की कि कैसे न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता को विकृत कर रही है. उन्होंने बताया कि कैसे सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के बारे में सवालों पर चुप है. ऐसे मामले हैं, जब सरकार ने सालों तक कॉलेजियम द्वारा भेजे नामों पर सहमति नहीं दी. इस तथ्य के बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट ने जोरदार तरीके से कहा था कि नाम दोबारा भेजने पर उन्हें सहमति देनी होगी. बार और बेंच के अनुसार, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में जॉन ब्रिटस के एक अतारांकित सवाल के जवाब में खुलासा किया था कि हाईकोर्ट के कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए की गई 164 सिफारिशों में से 126 वर्तमान में केंद्र सरकार के पास लंबित हैं.

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इंडियन ज्यूडिशरी में विविधता की कमी

सांसद जॉन ब्रिटस ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है. लेकिन, न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान योजना यह सुनिश्चित करती है कि सरकार द्वारा केवल एक विशेष वर्ग को पुरस्कृत किया जाए. बेशक इसमें अपवाद भी हैं. न्यायाधीशों के परिवार से आने वाले बहुत अच्छे जज होते हैं. सरकार के पिछले मंत्रिमंडल विस्तार में ओबीसी, एससी और एसटी मंत्रियों की एक बड़ी संख्या शामिल की गई थी. जब न्यायपालिका की बात आती है, तो हम इस तरह का विविधता भरा प्रतिनिधित्व नहीं चाहते हैं? क्या ऐसा प्रतिनिधित्व सिर्फ कैबिनेट में चाहते हैं? भारत के अब तक के 47 मुख्य न्यायाधीशों में से कम से कम 14 ब्राह्मण रहे हैं. 1950-70 तक सुप्रीम कोर्ट में जजों की अधिकतम संख्या 14 न्यायाधीशों की थी और उनमें से 11 ब्राह्मण थे. इंडियन ज्यूडिशरी में कोई विविधता नहीं है. मैं ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं हूं. मैं किसी वर्ग के खिलाफ नहीं हूं. लेकिन, सदन यह जानकर चौंक जाएगा कि 1980 तक देश के सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी का कोई न्यायाधीश नहीं था.

जस्टिस अकील कुरैशी का मुद्दा उठाया-

उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने उदाहरण के तौर पर जस्टिस अकील कुरैशी की पदोन्नति न होने का हवाला देते हुए उन लोगों की नियुक्तियों को रोक दिया है जो उनके लिए असुविधाजनक हैं। सदन में सांसद ने कहा “मैं नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन क्या हम जस्टिस अकील कुरैशी के बारे में बेखबर हो सकते हैं, जिन्हें जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत नहीं किया गया था। उनका क्या गुनाह था सर? मैं कहूंगा कि वह शक्तिशाली लोगों में से एक को भेजने में जिम्मेदार थे। आपको बता दें कि 2010 में न्यायमूर्ति कुरैशी ने वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में उनकी कथित संलिप्तता के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया था।

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