धारा 138 एन.आई. एक्ट मामलों में शिकायतकर्ता ‘पीड़ित’ की श्रेणी में: सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति के बिना अपील का अधिकार मान्यता दी
— उच्चतम न्यायालय ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा: धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों में शिकायतकर्ता को अपील का स्वतंत्र अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 (चेक बाउंस) के तहत दर्ज मामलों में शिकायतकर्ता (Complainant) को ‘पीड़ित’ (Victim) माना जाएगा, और ऐसे में उसे सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान के तहत विशेष अनुमति (Special Leave) लिए बिना भी अपील करने का अधिकार है।
यह फैसला न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के एक साझा निर्णय को चुनौती देने वाली आपराधिक अपीलों पर सुनवाई के दौरान सुनाया।
अदालत का अवलोकन
पीठ ने कहा:
“धारा 138 के संदर्भ में, शिकायतकर्ता स्पष्ट रूप से वह पक्ष है जिसने आर्थिक क्षति और कानूनी चोट का सामना किया है, क्योंकि उसके चेक का भुगतान आरोपी द्वारा न किए जाने के कारण उसका निरादर (dishonour) हुआ है। ऐसे में शिकायतकर्ता को सीआरपीसी की धारा 2(wa) के तहत ‘पीड़ित’ माना जाना उचित, न्यायसंगत और विधिसम्मत होगा।”
विधिक निष्कर्ष
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि:
- जब कोई अभियुक्त धारा 138 के तहत आरोपित होता है और उसे दोषमुक्त (acquittal) किया जाता है, तो शिकायतकर्ता — जो कि उस चेक का विधिक लाभार्थी होता है — को अपील का वैधानिक अधिकार प्राप्त है।
- सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान के अनुसार, पीड़ित व्यक्ति विशेष अनुमति (Section 378(4)) के बिना ही दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील कर सकता है, बशर्ते कि अपील केवल सीमित आधारों पर हो।
पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि:
“धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता और पीड़ित वस्तुतः एक ही व्यक्ति होता है। भले ही शिकायत धारा 200 सीआरपीसी के तहत की गई हो, इससे शिकायतकर्ता का ‘पीड़ित’ का दर्जा समाप्त नहीं होता।”
अपील की अनुमति
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि राज्य या शिकायतकर्ता के लिए धारा 378 के तहत जो कठोर शर्तें हैं, उन्हें धारा 372 के तहत पीड़ित की अपील पर नहीं थोपा जा सकता। इसलिए, चेक बाउंस के पीड़ित को विशेष अनुमति के बिना भी दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील करने का पूरा अधिकार है।
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए अपीलकर्ता को सीआरपीसी की धारा 372 के तहत चार माह के भीतर अपील दायर करने की अनुमति दी।
मामला: M/s. Celestium Financial बनाम A. Gnanasekaran एवं अन्य
न्यूट्रल साइटेशन: 2025 INSC 804
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