देश में बर्बर आक्रमणकारियों ने देश के जिन प्राचीन, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के ‘‘नाम बदल दिए’’ थे, उनके ‘‘मूल’’ नाम फिर से रखने के लिए पुनर्नामकरण आयोग के गठन का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जोसेफ ने यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति जोसेफ की अगुवाई वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न भी शामिल थे।
शीर्ष अदालत के न्यायधीश न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ने आज कहा कि वह ईसाई हैं, लेकिन फिर भी उन्हें हिंदू धर्म से प्रेम करते हैं। उन्होंने यह टिप्पणी उस वक्त की जब वह देश में प्राचीन, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों के मूल नामों को बहाल करने के लिए आयोग का गठन करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, ‘मैं एक ईसाई हूं लेकिन फिर भी मुझे हिंदू धर्म से बहुत लगाव है, जो एक महान धर्म है और इसे कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। हिंदू धर्म जिन ऊंचाइयों तक पहुंचा है और जिसका उपनिषदों, वेदों और भगवद गीता में भी वर्णन है, कोई भी किसी भी व्यवस्था उसके समान नहीं है। हमें इस महान धर्म पर गर्व होना चाहिए और इसे कम नहीं आंकना चाहिए।
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ने कहा की हमें अपनी महानता पर गर्व होना चाहिए और हमारी महानता हमें उदार बनाती है। मैं इसका अध्ययन करने की कोशिश कर रहा हूं। आपको हिंदू धर्म के दर्शन पर डॉ. एस. राधाकृष्णनन की किताब पढ़नी चाहिए। केरल में कई राजाओं ने चर्चों और अन्य धार्मिक स्थलों के लिए अपनी जमीन दान की थी।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि धार्मिक पूजा का सड़कों के नामकरण से कोई लेना-देना नहीं है और मुगल सम्राट अकबर ने विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव बनाने की कोशिश की थी।
याचिका खारिज-
पीठ ने वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज कर दी और कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वह अतीत में कैद होकर नहीं रह सकता।