कांवड़ यात्रा नेमप्लेट विवाद – सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हमारा आदेश साफ है कि अगर कोई अपनी मर्जी से दुकान के बाहर अपना नाम लिखना चाहता है तो हमने उसे रोका नहीं है. हमारा आदेश था कि नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.’ कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा रूट की दुकानों पर अनिवार्य रूप से नेमप्लेट लगाने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी जिसे शुक्रवार को भी जारी रखा गया.
कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानों और भोजनालयों के लिए नेमप्लेट विवाद पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि हमें शिव भक्त कांवड़ियों के भोजन की पसंद का भी सम्मान करना चाहिए.
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवी एन भट्टी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हमारा आदेश साफ है कि अगर कोई अपनी मर्जी से दुकान के बाहर अपना नाम लिखना चाहता है तो हमने उसे रोका नहीं है. हमारा आदेश था कि नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.’
जारी रहेगी अंतरिम रोक
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा रूट की दुकानों पर अनिवार्य रूप से नेमप्लेट लगाने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी जिसे शुक्रवार को भी जारी रखा गया. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि मध्य प्रदेश और उत्तराखंड की ओर से काउंटर एफिडेविट दायर किया जाए. मामले में अब अगली सुनवाई सोमवार को होगी.
उत्तराखंड ने मांगा दो हफ्ते का समय
सुनवाई के दौरान सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को बताया कि उन्हें बीती रात 10:30 बजे यूपी सरकार की तरफ से जवाब मिल गया था. उत्तराखंड ने जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय मांगा है. उत्तराखंड के वकील ने कहा कि ऐसा कानून है जो दुकान मालिकों को अपना नाम प्रदर्शित करने के लिए अनिवार्य करता है. यात्राएं वर्षों से होती आ रही हैं. ऐसे उपनियम हैं जिन्हें हम लागू कर रहे हैं.
उत्तराखंड ने कहा कि दुकानदारों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है. अंतरिम आदेश से काफी दिक्कतें हो रही हैं. ये उपनियम सिर्फ खाने तक ही सीमित नहीं हैं. सभी व्यवसायों के लिए नेमप्लेट अनिवार्य होनी चाहिए. जस्टिस रॉय ने कहा कि हमें दिखाएं कि आपने अपने राज्यों में कहां-कहां ऐसी जानकारी मांगी है.
‘आदेश से कानून व्यवस्था बनाने में आएगी दिक्कत’
उत्तराखंड ने कहा कि इस आदेश से कानून व्यवस्था बनाए रखने में दिक्कत आएगी. मान लीजिए कोई आम के ठेले पर नशीला पदार्थ लेकर आ गया तो उसकी पहचान नहीं हो पाएगी. कम से कम कानून तो लागू करें. उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर कानून नाम प्रदर्शित करने की अनुमति देता है तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश राज्य के कानून के विपरीत होगा.
हमें शिव भक्त कांवड़ियों के भोजन की पसंद का भी सम्मान करना चाहिए
एक अन्य हस्तक्षेपकर्ता के लिए वकील ने कहा कि हम भक्तों को दिक्कत हो रही है. नाम दुर्गा या सरस्वती ढाबा रखा गया है तो हम मानकर चलते हैं कि शाकाहारी खाना होगा. उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि हमें शिव भक्त कांवड़ियों के भोजन की पसंद का भी सम्मान करना चाहिए. हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि अंदर जाने पर हमने पाया कि कर्मचारी अलग हैं. मांसाहारी भोजन परोसा जाता है. मैं अपने मौलिक अधिकार के बारे में चिंतित हूं. स्वेच्छा से यदि कोई प्रदर्शन करना चाहता है, तो उसे ऐसा करने की अनुमति होनी चाहिए. अंतरिम आदेश में इस पर रोक लगाई गई है.
कोर्ट ने सुनीं हस्तक्षेपकर्ताओं की दलीलें
बेंच ने कुछ कांवड़ तीर्थयात्रियों की दलीलें भी सुनीं, जिन्होंने सरकार के निर्देशों का समर्थन करने के लिए मामले में हस्तक्षेप किया था. हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि कांवड़ यात्री केवल लहसुन और प्याज के बिना तैयार शाकाहारी भोजन ही लेते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ दुकानें भ्रामक नामों वाली हैं, जिससे यह गलत धारणा बनती है कि वे सिर्फ शाकाहारी भोजन परोसते हैं, जिससे तीर्थयात्रियों को परेशानी होती है.
‘नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं’
बेंच ने कहा कि स्वेच्छा से नाम प्रदर्शित करने में कोई दिक्कत नहीं है. हमारा ऑर्डर कहता है कि उन्हें ढाबे के बाहर मालिक का नाम और कर्मचारी का नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. जस्टिस रॉय ने कहा, ‘अगर कोई दुकानदार नाम प्रदर्शित करना चाहता है तो ठीक है’.
अब अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी.