केरल उच्च न्यायलय की बेंच ने नाबालिग को प्रेग्नेंट करने वाले बलात्कारी पादरी की सजा को कर दिया आधा-

केरल उच्च न्यायलय का अंतरात्मा को झकझोरने वाला न्याय जिसे पढ़ तिलमिला जायेंगे आप

केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार को अंतरात्मा को झकझोरने वाले कुख्यात कोट्टियूर बलात्कार मामले में पूर्व पादरी रॉबिन मैथ्यू वडक्कुमचेरी पर लगाई गई सजा को 20 वर्ष से आधा कर 10 वर्ष कर दिया

Kerala High court केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार को अंतरात्मा को झकझोरने वाले कुख्यात कोट्टियूर बलात्कार मामले में पूर्व पादरी रॉबिन मैथ्यू वडक्कुमचेरी पर लगाई गई सजा को 20 वर्ष से आधा कर 10 वर्ष कर दिया। रॉबिन मैथ्यू पर साल 2016 में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार कर गर्भवती करने का आरोप लगा था, जिसमें वो दोषी पाए गए थे। जिसके बाद थालास्सेरी की पॉक्सो अदालत ने उस पादरी को आईपीसी की धारा 376 (2) (एफ) और पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

अब केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नारायण पिशारदी ने पूर्व पादरी की पुनर्विचार याचिका पर विचार करते हुए आरोपों को धारा 376 (2) से धारा 376 (1) में बदलकर सजा को कम कर दिया। इससे पूर्व पादरी की सजा अब 10 साल के कठोर कारावास के साथ कुछ जुर्माना भरने तक सीमित हो चुका है। फरवरी 2017 में गिरफ्तार, रॉबिन मैथ्यू तब से जेल में बंद है और पहले ही लगभग पांच साल की जेल की सजा काट चुका है। उसने केरल में मनांथावडी कैथोलिक के तहत एक पादरी के रूप में सेवा करते हुए नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार को अंजाम दिया था।

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कनाडा भागने की कोशिश कर रहा था पादरी-

दरअसल, यह मामला तब सामने आया जब लड़की ने बच्चे को जन्म दिया। उस दौरान कैथोलिक पादरी के दबाव में पीड़िता के पिता ने पुलिस के सामने यह कबूल कर लिया था कि उसने अपनी ही बेटी को गर्भवती किया है। बता दें कि इस मामले ने तब लोगों का ध्यान खींचा था, जब एक नाबालिग लड़की ने पुलिस के सामने कबूल किया था कि उसके अपने पिता द्वारा उसके साथ बलात्कार करने के बाद उसे गर्भवती किया गया था।

लेकिन, कुछ दिनों के भीतर ही पुलिस ने पादरी रॉबिन मैथ्यू को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह देश से बाहर कनाडा भागने की कोशिश कर रहा था। उस साल अगस्त में, बलात्कार पीड़िता ने पूर्व पादरी से शादी करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। रॉबिन मैथ्यू ने भी एक याचिका दायर कर पीड़िता से शादी करने की बात कही थी और सजा पर रोक लगाने की मांग की थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

पॉक्सो कोर्ट ने सुनाई थी 20 साल की सजा-

पुलिस जांच के दौरान पादरी ने बताया कि आरोपी और उसके बीच सहमति से यौन संबंध थे। आरोपी ने पीड़िता से पैदा हुए बच्चे के पितृत्व को स्वीकार किया और POCSO अदालत के सामने तर्क दिया कि यह सहमति से किया गया था। तब वकील ने पुराणों और भारतीय पौराणिक कथाओं का व्यापक संदर्भ देते हुए तर्क दिया कि यह प्राकृतिक मानवीय आचरण था।

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हालांकि, अदालत ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि “यहां यह एक नैतिक मुद्दा नहीं है। सवाल यह है कि क्या PW1 के साथ संभोग करना A1 के लिए कानूनी तौर पर सही था? हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि A1 द्वारा किया गया कार्य कानूनी रूप से गलत था और यह IPC की धारा 376 और धारा 3 के Sec.4 और Sec.5 तथा POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध हैं।”

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