Non Payment Of House Rent – किराएदार (Tenant) के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-403 (बेईमानी से संपत्ति का उपयोग करना) व 415 (धोखा देना) की धाराओं में केस दर्ज हुआ था। वहीं इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट Allahabad High Court ने याचिकाकर्ता की अर्जी पर राहत देने से मना किया था और दर्ज केस खारिज करने से मना कर दिया था।
सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने कहा है कि किराएदार की ओर से किराया न देना सिविल विवाद का मामला है ये आपराधिक मामला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किराएदार किराया नहीं देता तो इसके लिए आईपीसी की धारा के तहत केस नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने किराएदार के खिलाफ दर्ज केस खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की।
शीर्ष न्यायलय में नीतू सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी का मामला आया था। किराएदार के खिलाफ आईपीसी की धारा-403 व धारा-415 के तहत प्राथमिकी दर्ज किया गया था।
हाई कोर्ट ने नहीं दी थी राहत-
सुप्रीम कोर्ट में नीतू सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी का मामला आया था। किराएदार के खिलाफ IPC की धारा-403 (बेईमानी से संपत्ति का उपयोग करना) व 415 (धोखा देना) की धाराओं में केस दर्ज हुआ था। वहीं इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने याचिकाकर्ता की अर्जी पर राहत देने से मना किया था और दर्ज केस खारिज करने से मना कर दिया था। जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।
‘कानूनी कार्रवाई संभव पर IPC के तहत नहीं दर्ज हो सकता केस’-
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि किराया पेमेंट न करना सिविल नेचर का विवाद है। सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर (FIR) खारिज करते हुए कहा कि किराया पेमेंट न करना सिविल विवाद है। यह आपराधिक मामला नहीं बनता है। मकान मालिक ने किराएदार पर उक्त आईपीसी की धाराओं के तहत केस दर्ज कराया था।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने कहा की ये मामला आईपीसी के तहत केस का नहीं बनता है। ऐसे में एफआईआर खारिज की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किराएदार के खिलाफ पेंडिंग किराए का एरियर और मकान खाली करने संबंधित विवाद का निपटारा सिविल कार्यवाही के तहत होगी।
केस टाइटल – नीतू सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी
केस नंबर – स्पेशल लीव पिटीशन क्रिमिनल नंबर 783 ऑफ़ 2020
कोरम – न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी