छह हाई कोर्ट बार एसोसिएशनों के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से मुलाकात कर जस्टिस यशवंत वर्मा के स्थानांतरण की सिफारिश वापस लेने की मांग
नई दिल्ली: छह उच्च न्यायालयों की बार एसोसिएशनों के नेताओं ने गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से मुलाकात कर दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरण की सिफारिश वापस लेने की मांग की।
आरोपों के घेरे में जस्टिस वर्मा
जस्टिस यशवंत वर्मा हाल ही में 14 मार्च को उनके आवास पर आग लगने की घटना के बाद अघोषित नकदी बरामद होने को लेकर विवादों में हैं। इस मामले में अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, जिसे लेकर बार एसोसिएशनों के नेताओं ने भी सवाल उठाए।
इस बैठक में इलाहाबाद, गुजरात, केरल, जबलपुर, कर्नाटक और लखनऊ (इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ) के बार एसोसिएशन के प्रतिनिधि शामिल हुए। उन्होंने CJI संजीव खन्ना और कॉलेजियम के अन्य सदस्यों—जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ से मुलाकात कर अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
बार एसोसिएशनों की मांग: न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों से भी हटाया जाए
न्यायिक कार्य पहले ही जस्टिस वर्मा से वापस ले लिया गया है, लेकिन बार एसोसिएशनों के प्रतिनिधियों ने अब उनसे सभी प्रशासनिक कार्य भी हटाने की मांग की।
जस्टिस वर्मा ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि उनके या उनके परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा स्टोररूम में कोई नकदी नहीं रखी गई थी और यह उन्हें फंसाने की साजिश है।
इस स्थानांतरण सिफारिश के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील पहले से ही 25 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं।
CJI ने दिया आश्वासन, लेकिन कोई ठोस वादा नहीं
इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने बैठक के बाद बताया कि CJI ने बार एसोसिएशनों की मांग पर विचार करने का आश्वासन दिया, हालांकि सूत्रों के अनुसार, CJI ने कोई ठोस वादा नहीं किया।
इससे पहले, बार एसोसिएशनों के प्रतिनिधियों ने CJI को एक ज्ञापन सौंपकर उनसे मिलने का अनुरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट की पारदर्शिता की पहल की सराहना
बार एसोसिएशनों ने CJI संजीव खन्ना द्वारा पारदर्शिता बढ़ाने और दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के कदमों की सराहना की।
ज्ञापन में यह भी कहा गया कि न्यायमूर्ति उपाध्याय की रिपोर्ट के अनुसार, आग लगने की घटना के एक दिन बाद किसी ने जस्टिस वर्मा के आवास से कुछ सामान हटा दिया था।
“ऐसे मामलों में अन्य लोग भी शामिल हो सकते हैं और एफआईआर दर्ज न होने से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई प्रभावित होगी,” ज्ञापन में कहा गया।
साफ-सुथरी न्यायपालिका की ओर एक नया दृष्टिकोण
यह मामला जनता के सामने एक स्वच्छ और पारदर्शी न्यायिक व्यवस्था की नई रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जहां न्यायपालिका के अंदर भी निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
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