‘Live-In Relationships’ सवैधानिक अधिकारों में आर्टिकल 21 का ‘बायप्रोडक्ट’ है जो तीव्र कामुक व्यवहार और व्याभिचार को बढ़ावा दे रहा है-

‘Live-In Relationships’ सवैधानिक अधिकारों में आर्टिकल 21 का ‘बायप्रोडक्ट’ है जो तीव्र कामुक व्यवहार और व्याभिचार को बढ़ावा दे रहा है-

मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय इंदौर पीठ Indore Bench of Madhya Pradesh High Court ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ Live-In Relationships संविधान के अनुच्छेद 21 Article 21 of Indian Constitution के तहत मिले अधिकारों का ‘बायप्रोडक्ट’ Byproduct बन गया है। इसकी वजह से यौन अपराधों में वृद्धि हो रही है। हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने एक महिला से रेप के 25 वर्षीय व्यक्ति की गिरफ्तारी के मामले में अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

कपल को एक दूसरे पर अधिकार नहीं देता लिव इन-

जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की पीठ ने आगे टिप्पणी की, “जो लोग इस स्वतंत्रता का फायदा उठाना चाहते थे, वे इसे अपनाने के लिए तत्पर हैं, लेकिन पूरी तरह से इस बात से अनजान हैं कि इसकी अपनी सीमाएं हैं और इस तरह के संबंधों के लिए किसी भी साथी को कोई अधिकार नहीं देता है।

उच्च न्यायलय High Court ने अपने आदेश में कहा की हाल के दिनों में लिव-इन संबंधों Live In Relationship से उत्पन्न अपराधों की बाढ़ का संज्ञान लेते हुए अदालत यह टिप्पणी करने पर मजबूर है कि लिव-इन रिलेशनशिप का अभिशाप संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाली संवैधानिक गारंटी का एक बाय-प्रोइडक्ट है, जो भारतीय समाज के लोकाचार को निगल रहा है और तीव्र कामुक व्यवहार के साथ ही व्याभिचार को बढ़ावा दे रहा है इससे यौन अपराधों में लगातार इजाफा हो रहा है। कोर्ट ने लिव-इन संबंधों से बढ़ती सामाजिक विकृतियों और कानूनी विवादों की ओर इशारा करते हुए कहा-जो लोग इस आजादी का शोषण करना चाहते हैं, वे इसे तुरंत अपनाते हैं, लेकिन वे इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं कि इसकी अपनी सीमाएं हैं और यह (आजादी) दोनों में किसी भी जोड़ीदार को एक-दूसरे पर कोई अधिकार प्रदान नहीं करती है।

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लिव इन पार्टनर की वजह से सगाई टूटी तो कोर्ट पहुंचा मामला-

हाईकोर्ट ने मामले की केस डायरी और अन्य दस्तावेजों के आधार पर कहा कि इस बात का खुलासा होता है कि 25 वर्षीय आरोपी और पीड़ित महिला काफी समय तक लिव-इन में रहे थे। इस दौरान आरोपी के दबाव में महिला का दो बार से ज्यादा गर्भपात भी कराया गया था। अदालत ने कहा कि दोनों जोड़ीदारों के आपसी संबंध तब बिगड़े, जब महिला ने किसी अन्य व्यक्ति के साथ सगाई कर ली। 25 वर्षीय व्यक्ति पर आरोप है कि उसने इस सगाई पर आग-बबूला होकर उसकी पूर्व लिव-इन पार्टनर को परेशान करना शुरू कर दिया। उस पर यह आरोप भी है कि उसने महिला के भावी ससुराल पक्ष के लोगों को अपना वीडियो भेजकर धमकी दी कि अगर उसकी पूर्व लिव-इन जोड़ीदार की शादी किसी अन्य व्यक्ति से हुई, तो वह आत्महत्या कर लेगा और इसके लिए महिला के मायके व ससुराल, दोनों पक्षों के लोग जिम्मेदार होंगे। पीड़ित महिला के वकील ने अदालत को बताया कि आरोपी द्वारा यह वीडियो भेजे जाने के बाद उसकी सगाई टूट गई और उसकी शादी नहीं हो सकी। इस मामले में प्रदेश सरकार की ओर से अमित सिंह सिसोदिया ने पैरवी की।

कोर्ट ने कहा-

“उसके कृत्यों ने अभियोक्ता, उसके परिवार के सदस्यों और अन्य व्यक्तियों को कितना तनाव दिया होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है।” इस पृष्ठभूमि में, लिव-इन-रिलेशनशिप के कारण हाल के दिनों में इस तरह के अपराधों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया और कहा, “इस अदालत को यह मानने के लिए मजबूर किया जाता है कि लिव-इन-रिलेशनशिप Live in Relationship का प्रतिबंध संवैधानिक गारंटी का उप-उत्पाद By Product है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान किया गया है, जो भारतीय समाज के लोकाचार को समाहित करता है, और कामुकता और कामुक व्यवहार को बढ़ावा देता है। यौन अपराधों को जन्म दे रहा है। जो लोग इस स्वतंत्रता का फायदा उठाना चाहते थे, वे इसे अपनाने के लिए तत्पर हैं, लेकिन पूरी तरह से इस बात से अनजान हैं कि इसकी अपनी सीमाएं हैं, और इस तरह के रिश्ते के लिए किसी भी साथी को कोई अधिकार नहीं देता है। आवेदक ऐसा प्रतीत होता है इस जाल में फंस गया है और खुद को एक पीड़ित के रूप में चित्रित करते हुए, यह मान लिया है कि एक बार जब उसका अभियोक्ता के साथ संबंध हो जाता है, तो विभिन्न तस्वीरें और वीडियो क्लिप आदि के माध्यम से वह लड़की को मजबूर कर सकता है।”

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केस टाइटल – अभिषेक बनाम मध्य प्रदेश राज्य
केस नंबर – MISC. CRIMINAL CASE No. 15851 of 2022

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