7500 या उससे अधिक कनेक्शन वाले केबल टीवी ऑपरेटरों पर लग्ज़री टैक्स असंवैधानिक नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि 7500 या उससे अधिक कनेक्शन रखने वाले केबल टीवी ऑपरेटरों पर लग्ज़री टैक्स (या मनोरंजन कर) लगाना असंवैधानिक नहीं है। यह निर्णय देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों—जैसे कि इलाहाबाद, दिल्ली, गुवाहाटी, गुजरात, झारखंड, केरल, मद्रास, ओडिशा, पंजाब एवं हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड—से आई कई सिविल अपीलों पर सुनवाई के बाद दिया गया है। इसके अलावा, टाटा प्ले लिमिटेड द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल दो रिट याचिकाओं पर भी विचार किया गया।
पीठ और मुख्य टिप्पणियां
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट किया कि 28 जून 2012 को केरल हाई कोर्ट द्वारा पारित वह निर्णय, जिसमें 7500 से अधिक कनेक्शन वाले केबल टीवी ऑपरेटरों पर टैक्स को भेदभावपूर्ण मानकर असंवैधानिक ठहराया गया था, सही नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “केरल हाई कोर्ट को छूट वाले प्रावधान को रद्द करते हुए सभी ऑपरेटरों पर टैक्स लगाने का निर्देश देना चाहिए था, न कि टैक्स को ही असंवैधानिक घोषित करना।”
संवैधानिक आधार
अदालत ने कहा कि ब्रॉडकास्टिंग एक सेवा है, जिस पर संसद को सेवा कर लगाने का अधिकार है (सूची I, प्रविष्टि 97), जबकि मनोरंजन एक अलग विषय है जो राज्य सूची (सूची II, प्रविष्टि 62) के तहत आता है, इसलिए राज्य सरकारें इस पर मनोरंजन कर लगा सकती हैं।
फैसले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता (केबल टीवी ऑपरेटर) विभिन्न राज्यों के अधिनियमों के तहत लगाए गए मनोरंजन कर को चुनौती दे रहे थे। उनका तर्क था कि वे केवल ब्रॉडकास्टिंग सेवा प्रदान करते हैं और यह सेवा कर के दायरे में आती है, न कि मनोरंजन कर के। केरल राज्य ने केरल हाई कोर्ट द्वारा उस प्रावधान को रद्द किए जाने के निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें 7500 से कम कनेक्शन वाले ऑपरेटरों को टैक्स से छूट दी गई थी और इससे ऊपर वालों पर टैक्स लगाया गया था।
विधानमंडल की शक्ति
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत के संविधान के तहत टैक्स लगाने की शक्ति स्वतः या अप्रत्यक्ष रूप से किसी अन्य प्रविष्टि से व्युत्पन्न नहीं की जा सकती। टैक्स लगाने की शक्ति विशेष रूप से निर्दिष्ट प्रविष्टियों (सूची I या II) के तहत ही हो सकती है। सूची III (समवर्ती सूची) में कोई टैक्स प्रविष्टि नहीं है।
मनोरंजन के रूप में टेलीविजन
पीठ ने कहा कि टेलीविजन के माध्यम से प्रदान किया गया मनोरंजन—चाहे वह केबल हो या डीटीएच—मनोरंजन की श्रेणी में आता है और इस पर राज्य सरकार टैक्स लगा सकती है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एक ही गतिविधि पर दो अलग-अलग कर लगाए जा सकते हैं, बशर्ते कि वे दो अलग-अलग प्रविष्टियों के तहत हों और संबंधित विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आते हों।
मुख्य टिप्पणी
कोर्ट ने कहा, “जब तक कोई मनोरंजनकर्ता (ब्रोडकास्टर) अपनी सेवा के जरिए कार्यक्रम, फिल्म या प्रस्तुति का प्रसारण नहीं करेगा, तब तक दर्शकों को मनोरंजन उपलब्ध नहीं हो सकता।” इस आधार पर अदालत ने माना कि टैक्स लगाने का औचित्य संविधान के अनुच्छेद 246 और संबंधित सूचियों के संदर्भ में ‘पिथ एंड सब्सटेंस’ सिद्धांत के अनुरूप है।
निष्कर्ष और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केबल टीवी ऑपरेटरों को सेवा कर और मनोरंजन कर—दोनों का भुगतान करना होगा, क्योंकि वे सेवा भी प्रदान कर रहे हैं और मनोरंजन भी। इस आधार पर, न्यायालय ने केरल हाई कोर्ट का निर्णय रद्द कर दिया, राज्य सरकार की अपील को स्वीकार किया और रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया।
मामले का नाम: State of Kerala & Another v. Asianet Satellite Communications Ltd. & Others
(न्यूट्रल सिटेशन: 2025 INSC 757)
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