मद्रास हाईकोर्ट ने स्पाइसजेट एयरलाइन को करारा झटका दिया है। अदालत ने स्विट्जरलैंड की एक कंपनी क्रेडिट सुइस एजी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट के लिक्विडेटर को स्पाइसजेट की संपत्ति पर कब्जा लेने का भी आदेश दिया है। एयरलाइन ने एयरक्राफ्ट की मेंटेनेंस के लिए स्विस कंपनी को 2.4 करोड़ डॉलर (करीब 181 करोड़ रुपये) का भुगतान नहीं किया। क्रेडिट सुइस ने कंपनी कानून, 1956 के प्रावधानों के तहत लिक्विडेटर नियुक्त करने की अपील की थी।
न्यायमूर्ति आर सुब्रमण्यम ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि स्पाइसजेट मतुसूदन गोवर्धनदास एंड कंपनी बनाम मधु वूलन इंडस्ट्रीज (पी) लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट के सुझाए गए तीन परीक्षणों के मामले में पूरी तरह विफल रही है। याचिकाकर्ता के अनुसार स्पाइसजेट ने विमान के इंजनों के रखरखाव, मरम्मत तथा संचालन के लिए अनिवार्य चीजों के लिए स्विट्जरलैंड की एसआर टेक्निक्स कंपनी से सेवाएं ली थीं।
मद्रास उच्च न्यायालय ने विमानन कंपनी स्पाइसजेट लिमिटेड के परिसमापन के अपने आदेश पर स्थगन दे दिया है। कंपनी ने कहा है कि वह एक बड़ी पीठ के समक्ष अपील करने के साथ इस बारे में अन्य उपयुक्त कदमों पर विचार कर रही है।
बीएसई को भेजी सूचना में स्पाइसजेट ने कहा कि अदालत ने स्विट्ज़रलैंड की एक कंपनी क्रेडिट सुइस एजी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को स्पाइसजेट के परिसमापन और उच्च न्यायालय के आधिकारिक परिसमापक (लिक्विडेटर) को एयरलाइन की संपत्तियों पर कब्जा लेने का आदेश दिया था।
क्रेडिट सुइस ने इंजन रखरखाव सेवा कंपनी एसआरटी टेक्निक्स के 2.40 करोड़ डॉलर के बकाये का भुगतान नहीं करने के लिए स्पाइसजेट के खिलाफ याचिका दायर की थी।
स्पाइसजेट ने कहा, ‘‘मद्रास उच्च न्यायालय ने यह मानने के बावजूद कि समझौते की अवधि के दौरान इंजन रखरखाव करने के लिए एसआर टेक्निक्स एसआरटी के पास नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) से वैध अधिकार नहीं था, कंपनी की दलील को खारिज करते हुए उसके परिसमापन का आदेश दिया था।’’
विमानन कंपनी ने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने पिछले आदेश पर हालांकि उसी दिन रोक लगा दी। साथ ही कंपनी को दो सप्ताह के भीतर पचास लाख डॉलर के बराबर राशि जमा करने की शर्त पर तीन सप्ताह तक की राहत दी है।
स्पाइसजेट ने कहा, ‘‘कंपनी इस आदेश की समीक्षा कर रही है। और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दी गई समयसीमा के भीतर उचित कदम उठाएगी।
इससे पहले न्यायमूर्ति आर सुब्रमण्यम ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि स्पाइसजेट मतुसूदन गोवर्धनदास एंड कंपनी बनाम मधु वूलन इंडस्ट्रीज (पी) लिमिटेड मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा सुझाए गए तीन परीक्षणों के मोर्चे पर संतुष्ट करने में पूरी तरह विफल रही है।
न्यायालय के अवलोकन और निष्कर्ष –
कंपनी अधिनियम की धारा 434(1)(ए) और धारा 433 पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा: “एक बार जब कंपनी अधिनियम की धारा 434 के तहत नोटिस जारी किया जाता है तो ऋण का भुगतान करने में असमर्थता के बारे में एक काल्पनिक कल्पना बनाई जाती है, इसलिए प्रतिवादी / देनदार कंपनी की ओर से यह दिखाने के लिए दायित्व बन जाता है कि ऋण स्वयं अवैध है या कि कोई ऋण नहीं है, यदि उसे समापन नोटिस जारी करने के परिणाम से बचना है।” अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 434 द्वारा बनाई गई काल्पनिक कल्पना के कारण मामले में ऋण का अस्तित्व साबित हो गया है।
अदालत के समक्ष प्राथमिक प्रश्न सुप्रीम कोर्ट द्वारा तैयार किए गए तीन-आयामी परीक्षण के मानकों के खिलाफ देनदार कंपनी द्वारा सामने रखे गए बचाव की प्रामाणिकता का परीक्षण करना होगा। अदालत ने आदेश में कहा, “इसलिए मैं स्टांपिंग के रूप में आवश्यकताओं में जाने का प्रस्ताव नहीं करता हूं। मुझे यह बताना चाहिए कि समझौतों और विनिमय के बिलों की अनदेखी करते हुए भी प्रतिवादी द्वारा जारी किए गए स्वीकृति के प्रमाण पत्र से पता चलता है कि एक स्पष्ट स्वीकृति है।
विनिमय के प्रत्येक बिल को स्वीकृति के प्रमाण पत्र द्वारा समर्थित किया जाता है। प्रतिवादी ने स्वीकृति के प्रमाण पत्र के निष्पादन से इनकार नहीं किया है।” सुप्रीम कोर्ट के फैसले और माइकल हार्ट में मद्रास हाईकोर्ट डीबी के फैसले के अलावा, अदालत ने क्लासिक डायमंड्स (इंडिया) लिमिटेड बनाम आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड (2016) में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया कि सवाल स्टांपिंग या स्टांपिंग की पर्याप्तता से संबंधित कार्यवाहियों के दायरे के लिए वास्तव में विदेशी है, यानी समापन की स्वीकृति है।
अदालत ने इस पर ऋणों की प्रवर्तनीयता तय करने के पहलू पर अपनी अंतिम टिप्पणियों में कहा, “जब इस न्यायालय की एक खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से यह निर्धारित किया कि दस्तावेज़ का उत्पादन भी अनावश्यक है, क्योंकि दस्तावेज़ के निष्पादन से इनकार नहीं किया गया है, मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए स्टैम्पिंग या चरित्र के पहलू पर ध्यान देना उचित होगा। दस्तावेज़ के बारे में कि क्या यह मांग पर देय विनिमय का बिल है या यह इन कार्यवाही में मांग आदि पर देय विनिमय का बिल है।”
स्पाइसजेट के इस निवेदन पर कि किए गए समर्थन समझौते द्वारा निर्धारित उचित रूप में नहीं हैं, अदालत का मानना है कि 2012 के पूरक समझौते के बाद से एयरलाइंस को क्रेडिट सुइस एजी के पक्ष में बिल ऑफ एक्सचेंज का समर्थन करने के लिए एसआर टेक्निक्स की क्षमता के बारे में पता था। स्पाइसजेट और एसआर टेक्निक्स के बीच इस आशय का एक क्लॉज था। यह केवल समझौते के अनुसरण में था कि प्रतिवादी कंपनी द्वारा ऐसे विनिमय बिलों के समर्थन में स्वीकृति प्रमाण पत्र जारी किए गए थे।
अदालत ने यह भी रिकॉर्ड में रखा कि उक्त पूरक समझौते के आधार पर प्रतिवादी कंपनी छह महीने की अस्थगित भुगतान योजना का लाभ उठा सकती है।
अदालत ने एयरलाइंस द्वारा निर्धारित रक्षा की प्रामाणिकता पर टिप्पणी की, “इसलिए, यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी कंपनी ने इन दस्तावेजों के निष्पादन के द्वारा एक अस्थगित भुगतान का लाभ प्राप्त किया। मेरी राय में इसे अस्वीकार करने को वास्तविक नहीं कहा जा सकता। पूरक समझौते के तहत एक लाभ प्राप्त करने के बाद और आवश्यकतानुसार दस्तावेजों को निष्पादित करने के बाद प्रतिवादी अब उपकरण पर मुहर लगाने से संबंधित तकनीकी आपत्तियों को उठाते हुए दायित्व से बचने की कोशिश नहीं कर सकता।” डीजीसीए के अनुसार एयर क्राफ्ट मेंटेनेंस करने के लिए एसआर टेक्निक के लाइसेंस की कमी से संबंधित प्रतिवादी वकील के तर्कों पर कोर्ट ने स्पाइसजेट और एसआर टेक्निक्स के बीच समझौते में एक विशेष क्लॉज (क्लॉज 14.3) पर भी ध्यान दिया। वहीं पूर्व में लिखित नोटिस द्वारा समझौते को समाप्त करने के लिए संबंधित अधिकारियों द्वारा एसआर टेक्निक्स द्वारा आवश्यक किसी भी प्रमाणीकरण को रद्द या निलंबित कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, “यह विवाद में नहीं है कि प्रतिवादी कंपनी ने क्लॉज 14.3 को लागू नहीं किया और समझौते को समाप्त कर दिया। यह इस तथ्य से अवगत होने के बावजूद एसआर टेक्निक्स की सेवाओं का लाभ उठाने का विकल्प चुनती है कि एसआर टेक्निक्स के पास डीजीसीए द्वारा वैध प्राधिकरण नहीं था।” इसके अलावा, समझौते के खंड 14.4 में दोनों पक्षों को खंड 14.3 के तहत समझौते की समाप्ति से पहले सभी दायित्वों को पूरा करने की आवश्यकता है। समझौते की समाप्ति के बाद भी समझौते के तहत दायित्वों के उल्लंघन के दावे करने के लिए पक्षकारों के लिए खुला था।
अदालत ने इस खंड की व्याख्या इस प्रकार की: “जबकि यह स्पाइसजेट लिमिटेड के लिए अनुबंध को समाप्त करने के लिए खुला था, इस कारण एसआर टेक्निक्स के पास एक वैध प्राधिकरण नहीं था। इस तरह की समाप्ति के प्रभावी होने से पहले अनुबंध के तहत उत्पन्न होने वाले दायित्वों से स्पाइसजेट लिमिटेड को समाप्त नहीं किया जाएगा।”
तदनुसार, अदालत ने माना कि प्रतिवादी कंपनी बचाव की प्रामाणिकता पर सुप्रीम कोर्ट के तीन-आयामी परीक्षण को संतुष्ट करने में ‘बुरी तरह विफल’ रही है। कंपनी को कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 433 (ई) के तहत बकाया ऋण का भुगतान करने में असमर्थता के लिए बंद कर दिया जाना चाहिए। अंत में उक्त आदेश के संचालन पर प्रतिवादियों के वरिष्ठ वकील ने अपील दायर करने के लिए खुद को समय देने के लिए दो सप्ताह के प्रवास का अनुरोध किया गया। अदालत ने तीन सप्ताह की अवधि के लिए आदेश के संचालन पर रोक लगाकर इसे स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि स्पाइसजेट लिमिटेड आदेश की तारीख से दो सप्ताह पहले कंपनी की याचिका संख्या 363/2015 के क्रेडिट में पांच मिलियन डॉलर के बराबर राशि जमा करे।
केस टाइटल – क्रेडिट सुइस एजी बनाम स्पाइसजेट लिमिटेड
केस संख्या – 2015 की कंपनी याचिका संख्या 363 और सी.ए. 2015 की संख्या 887 और 888 और 2020 की 55